जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने विदाई शब्द की विवेचना करते हुए कहा कि वि का अर्थ विनयधर्म से लेते हुए विनय को रामबाण दवा का रूप दिया जो सर्वत्र काम मे आने वाली है! हारी हुई बाजी विनय से जीत ली जाती है!अहंकार से जहाँ पतन होता है विनय से उत्थान होता है!
आज के समय विनय का भाव समाप्त हो रहा है! पशिचमी सभ्यता के कारण भोजन से लेकर विद्यालयों मे देने वाले खड़े रहते है एवं विद्यार्थी पाने वाले कुर्सी टेबलों का प्रयोग कर रहे है! धर्म का प्रारम्भ ही विनय भावना से होता है!विदाई का दूसरा अक्षर दा अर्थात दान की प्रेरणा देता है!हमारे मन मे जब तक समस्त जीवात्मा के प्रति करुणा दया का भाव न हो तब तक दान पुण्य परोपकार के कार्य होने असम्भव है! तीसरा अक्षर ई अर्थात ईशवर भजन की समर्पण की प्रेरणा देता है! ईशवर परमपिता का स्मरण कीर्तन भजन करने वाला मानसिक शान्ति को प्राप्त करता है मानसिक शान्ति के चलते आने वाले कष्ट बाधाएं भी सहजता से सहन होती है!
सभा मे इसके पूर्व साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा ॐ अ सि उ सा नवकार मंत्र के बीज अक्षरों का सामूहिक जाप कराकर उसके महत्व को विस्तार से प्रकाशित किया गया!समाज की और से चार माह तक जो धर्म उत्सव मनाया गया उसका विस्तार से प्रकाश डालते हुए गुरुदेवो के जीवन दर्शन पर प्रकाश डाला गया! संस्था के विभिन्न सेवा मे कार्य करने वाले कार्यकर्ताओ का तहेदिल से आभार प्रकट किया गया! महामंत्री उमेश जैन ने स्वागत व सूचनाएं देते हुए दिनांक 20 नवंबर को सुबह 8 बजे मंगल शोभा यात्रा के साथ पुरषोत्तम जैन के निवास स्थल पर पदापर्ण मंगल प्रवचन का आयोजन होगा एवं दोपहर 3 बजे टैगोर नगर मे प्रमोद जैन के निवास पर गुरुदेव पधारेंगे आदि सूचनाएं प्रदान की।