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विनय का सतत् प्रयोग अहंकार को तोड़ता है : गच्छाधिपति जिनमणिप्रभसूरिश्वरजी

विनय का सतत् प्रयोग अहंकार को तोड़ता है : गच्छाधिपति जिनमणिप्रभसूरिश्वरजी

 ★ मनुष्य जीवन छोटा है, लेकिन साधना से उसे पूर्ण बनाया जा सकता है 

Sagevaani.com @चेन्नई ; श्री मुनिसुव्रत जिनकुशल जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में श्री सुधर्मा वाटिका, गौतम किरण परिसर, वेपेरी में शासनोत्कर्ष वर्षावास में धर्मपरिषद् को संबोधित करते हुए गच्छाधिपति आचार्य भगवंत जिनमणिप्रभसूरीश्वर म. ने उत्तराध्यन सूत्र के चौथे अध्याय की गाथा का विवेचन करते हुए कहा कि जीवन को सार्थक बनाने के लिए कम समय मिला है और पूर्ण समय भी मिला है। समय की गणना द्रव्य के आधार पर है और पूर्णाता उपयोगिता के आधार पर है। कम मिला है लेकिन पूर्ण मिला है। देवताओं की उम्र बहुत होती है, परन्तु अध्यात्म के हिसाब से वह पूर्ण नहीं है। नरक और तिर्यंच के पास भी बहुत है, पर पूर्ण नहीं है। हमारा मनुष्य जन्म छोटा है, परन्तु एक कदम आगे उठाने की जरुरत है और हम साधना के द्वारा उसे पूर्ण कर सकते हैं।

◆ इगो से भाई-भाई, परिवार, समाज में विघटन होता है

आचार्य श्री ने कहा कि हमारे भीतर सदगुण भी है और दुर्गण भी है। निमित्त वही है एक व्यक्ति क्रोध कर लेता है और दूसरा क्षमा को प्रकट करता है, अतः निमित्त को दोष नहीं देना चाहिए। जबकि हम स्वभाव को बनाते है। जैसे आग का स्वभाव होता है जलाना। भगवान महावीर ने तिपृष्ट वासुदेव के युग में निमित्त मिलने पर क्रोध किया, वहीं महावीर के युग में मात्र क्षमा को धारण किया। व्यक्ति अहंकार के कारण, इगो के कारण सही बात को भी स्वीकार नहीं करते। तभी परिवार में टुटन हो रहे है, समाज में विघटन हो रहा, भाई भाई में झगड़ा होता है। प्रेम हमें बहुत समझाता है, लेकिन हमारा इगो आड़े आ जाता है। प्रेम हाथ जोड़ता है, विन्रमता से निवेदन करता है, लेकिन इगो झुकता नहीं है। बाहुबली के वैराग्य में निमित्त युद्ध ही बना, मन बदला, विचार बदला, भातृत्व का भाव पैदा हुआ और केश लुंचन कर साधु बन गया। पर छोटे भाईयों को मैं वन्दना कैसे करुं? इस भाव से बाहुबली वहीं खड़े रहते है। मन में चिन्तन आया कि में यही साधना करुंगा और केवलज्ञान को प्राप्त कर भगवान आदिनाथ के समवसरण में जाऊंगा। परन्तु जैसे ही बहनों के समझाने पर अहंकार को छोड़ वन्दना के लिए एक कदम आगे बढ़ाया और केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया।

◆ नमस्कार में भी विनय है और वात्सल्य में भी विनय

गुरु भगवंत ने आगे कहा कि नमस्कार में भी विनय है और वात्सल्य में भी विनय है। विनय का सतत् प्रयोग अहंकार को तोड़ता है। साधु को वन्दना हम उनके संयम को करते है। शिष्य गुरु को वन्दना करते है, गुरु शिष्यों पर वात्सल्य करते है, उसमें विनय का भाव प्रकट होता है।

समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती

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