चेन्नई. हरियाणा प्रांत का एक ग्राम है – रिण्डाना, जहां सोनी परिवार में जन्म हुआ था – विद्या वाचस्पति प्रवर्तक सुभद्र मुनि का। मात्र 12 वर्ष की आयु में आप आचार्य कल्प रामकृष्ण जी म. के श्रीचरणों में समर्पित हो गए और उनके शिष्य बन गए। जैन मुनि दीक्षा अंगीकार करने के पश्चात आपने आगम, न्याय, व्याकरण, मंत्र, तंत्र, ज्योतिष, दर्शन आदि अनेक विषयों का तलस्पर्शी अध्ययन किया और आज वर्तमान में आप श्रमण संघ के उत्तर भारतीय प्रवर्तक जैसे गरिमापूर्ण पद पर शोभायमान हैं। यह विचार वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में आयोजित गुरु सुभद्र जन्मोत्सव के अवसर पर व्यक्त किए। इस अवसर पर भाई-बहनों ने सामायिक दिवस की आराधना कर गुरु गुणगान महोत्सव में अपनी गुरुभक्ति का परिचय दिया।
गुरुदेव ने कहा कि राष्ट्र संत सुभद्र मुनि एक ओर जहां अद्भूत प्रवचनकार हैं, वहीं दूसरी ओर अद्वितीय साहित्यकार भी हैं। आपकी वाणी इतनी मधुर है कि सान्निध्य में आने वाले हर साधु-साध्वी एवं श्रावक-श्राविका को आत्मीय भाव से पूरा पूरा भिंगो देती है। हमारे दादा गुरुदेव स्वनाम धन्य महामहिम उत्तर भारतीय प्रवर्तक भण्डारी पद्म चन्द्र जी म. एवं श्रुताचार्य गुरुदेव अमर मुनि के आप विशेष कृपापात्र एवं स्नेहपात्र रहे हैं। आपकी अनुशासन कला भी बड़ी ही अनूठी है। आपके अनुशासन में कठोरता या कर्कशता के दूर- दूर तक भी दर्शन नहीं होते। आपके संघ संचालन में भी एक ऐसी विलक्षण मिठास है कि- चतुर्विध संघ, उस स्नेह व कृपा पाश में अनायास ही बंध जाता है। आप संयम सुमेरु महाप्राण मुनि मायाराम परंपरा के प्रथम आचार्य पद पर सुशोभित हुए। परंतु संघ संगठन के उद्देश्य से आपने ऐसे सर्वोच्च पद का त्याग कर एक अनुपम उदाहरण समाज के सम्मुख प्रस्तुत किया। प्रभु महावीर से हम यही प्रार्थना करते हैं कि- आप स्वस्थ एवं दीर्घायु बनें तथा स्व-पर कल्याण के मार्ग पर सदा वर्धमानित बनें। उप प्रवर्तक पंकज मुनि के मंगलपाठ द्वारा धर्म सभा का समापन हुआ।