ज्ञान का विकास करते करते ज्ञान होता हैं। फिर भी सभी में ज्ञान का विकास समान नही होता। कुछ छात्रों को याद बहुत जल्दी हो जाता है, तो कुछ को देर से याद होता हैं। सबकी बुद्धि समान नही होती।
अभ्यास करने से स्मरण शक्ति का विकास हो सकता हैं, उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनि श्री ज्ञानेन्द्रकुमार जी ने *तेरापंथ जैन विद्यालय* में प्रार्थना सभा में आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये।
मुनि श्री ने आगे कहा कि स्मरण शक्ति के विकास के लिए ज्ञान मुद्रा में *“ऊँ ह्रीं णमो उवज्झायाणं”* एवं *भक्तामर स्तोत्र का छठे श्लोक का 27 बार जप* करने के प्रयोग समझायें। विद्या की देवी सरस्वती हैं, उसे मंत्र आराधना से सिद्ध किया जा सकता है।
भारतीय शिक्षा पद्धति में जीवन विकास के साथ सभी बन्धनों से मुक्ति के लिए विद्या ग्रहण की जाती हैं। विद्या वही, जो बंधन से मुक्ति की ओर ले जाए।
*मुनि श्री रमेशकुमार ने कहा कि* विद्या विनय देती है। विनय से ज्ञान की प्राप्ति है। विद्या विकास के साथ यदि केवल बुद्धि का ही विकास होगा तो तर्क बढ़ेगी। *बुद्धि कुए का पानी है और विद्या विशाल समुद्र के समान है।*
विद्यार्थियों में शिक्षा के साथ के साथ विनय, विवेक बढ़ने से बच्चों में सर्वांगीण विकास हो सकता हैं। मुनि श्री ने विकासशील विद्यार्थीयों के पांच लक्षणों को भी विस्तार से समझाया।
*मुनि श्री सुबोधकुमार ने कहा कि* ज्ञान सागर के समान अनंत हैं। हम सब उस सागर में एक बूंद के समान हैं, बिंदु से सिंधु बनने का माध्यम विद्यालय होता हैं। बच्चे उस विद्या के मंदिर में पढ़ते हैं। महान व्यक्ति से श्रेष्ठ है अच्छा इंसान बनना और हर विद्यार्थी को यही लक्ष्य रखना चाहिए।
इससे पूर्व विद्यालय के विद्यार्थीयों ने “अणुव्रत गीत”, “अर्हं अर्हं की वंदना” से प्रार्थना की। विद्यालय के मैनेजिंग ट्रस्टी श्री भंवरलाल मरलेचा ने तेरापंथ जैन स्कूल का परिचय देते हुए बताया कि इस विद्यालय में बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ जीवन विज्ञान की शिक्षा से बच्चों का सर्वागीण विकास करने का प्रयास किया जाता है।
प्रिंसिपल आशा दृष्टि ने आभार ज्ञापित किया। चैयरमैन श्री छगनमल धोका, महासंवाददाता श्री सूरजमल धोका, शिक्षिकाएँ एवं समाज के गणमान्य लोग इस अवसर पर उपस्थित थे।