Share This Post

Featured News / Main Slider / ज्ञान वाणी

विकार और विलास युग को विचार और विकास युग में बदलें: जयधुरंधर मुनि

विकार और विलास युग को विचार और विकास युग में बदलें: जयधुरंधर मुनि
वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में  जयधुरंधर मुनि ने युवक-युवती संस्कार शिविर के अंतर्गत विशेष प्रवचन में कहा युवा पीढ़ी समाज की भावी कर्णधार है। उन्हें सुसंस्कृत एवं सही दिशा प्रदान करना जरूरी है। जिस प्रकार वन में भटकने पर पुनः सही रास्ता प्राप्त करना दुष्कर होता है, उसी प्रकार युवावस्था में भटक जाने वाले का जीवन बर्बाद हो जाता है। आज के इस विकार एवं विलास के कगार पर खड़े युग को विचार एवं विकास युग में बदलने की नितांत आवश्यकता है।
 
व्यसन और फैशन की दुनिया में फंसे हुए युवकों को  चार ‘भ’ को कभी भूलना नहीं चाहिए। ‘भेष अर्थात वेशभूषा – व्यक्ति की पहचान कराती है । शालीन वस्त्र पहनने चाहिए। भाषा विवेकपूर्ण होते हुए माधुर्यता लिए हुए होनी चाहिए। भोजन में सात्विक आहार किया जाना चाहिए और चाहे देश में हो या विदेश में हो भगवान को भी नहीं भूलना चाहिए।
चकाचौंध की इस दुनिया में जो स्वयं पर नियंत्रण रख लेते हैं वे युवक-युवती पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से बच सकते हैं। दुर्व्यसनों का सेवन मनुहार से  होता है। उसके बाद मर्दानगी दिखाने के लिए उस आदत को और आगे बढ़ा दिया जाता है,  मजाक – मजाक में भी ऐसी लत पड़ जाती है, बाद में व्यक्ति मजबूर होकर और ज्यादा उन सबका सेवन करना चालू कर देता है और  बीमारी उसको उस आदत से छुटकारा नहीं दिला पाती।
इसलिए यौवन अवस्था में सावधानी बरतनी बहुत जरूरी है, अन्यथा दुर्घटना घटने की पूरी संभावना रहती है। युवाओं के भटकने का प्रमुख कारण स्वच्छंदता है।
माता-पिता द्वारा युवक-युवतियों पर किया गया सम्यक नियंत्रण बगीचे में माली, खेत में बाड़, आभूषण के लिए तिजोरी और नदी के लिए किनारे की तरह संतान के लिए रक्षक सिद्ध होता है।
जिस प्रकार पतंग को हवा में उड़ने दिया जाना चाहिए लेकिन डोर अपने हाथों में रखनी जरूरी है। स्वच्छंदता एवं अति कठोर अनुशासन दोनों ही नुकसानदायक होते हैं। दूध में तूफान आने से पहले ही उसे नियंत्रित कर लेना चाहिए ।वह संतान भाग्यशाली होती है, जिसके अभिभावक उनकी चिंता करते हुए उन्हें सही राह दिखाते हैं। एक संतान को अपने मां – बाप और गुरु से कुछ भी छुपाना नहीं चाहिए।
 
वर्तमान में उपलब्ध भौतिक संसाधन जैसी मोबाइल, इंटरनेट, टीवी आदि का दुरुपयोग करने पर सुविधा ही दुविधा बन जाती है। युवा वर्ग को मित्र चयन भी सोच समझ कर करना चाहिए। बुरी आदत वालों के साथ में कभी नहीं बैठना चाहिए। युवाओं के जोश के साथ में होश भी रहना जरूरी है। जिस प्रकार एक जीभ बत्तीस दांत के बीच में भी सुरक्षित रह सकती है , उसी प्रकार यदि स्वयं पर अनुशासन रहता है, तो वह युवा दूसरे बिगड़े हुए युवकों को भी सुधार सकता है । 
इसके पूर्व जयपुरंदर मुनि ने  युवा वर्ग को समय का सदुपयोग करने हेतु प्रेरणा देते हुए कहा समय को बर्बाद करने वाला , स्वयं बर्बाद हो जाता है । व्यक्ति यह सोचता है कि मैं कल एक काम कर लूंगा तो कल तो नहीं आता किंतु काल आ जाता है। छोटी सी उम्र जो मिली है, वह पल-पल , क्षण – क्षण घटती जा रही है। एक रोचक रूपक के माध्यम से उम्र किस तरह से बीत जाती है उसका प्रस्तुतीकरण भी किया। जयकलश मुनि ने उम्र थोड़ी सी मिली थी, वह भी घटने लगी देखते देखते गीतिका प्रस्तुत की।
 
धर्म सभा में कांताबाई चोरडिया ने 43 उपवास,  मनोज बोहरा ने 15 उपवास तथा अनेक युवक युवतियों सहित तपस्वीयों ने 6, 7 और 9 की तपस्या के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। श्री जयमल जैन चातुर्मास समिति के प्रचार प्रसार समिति चेयरमैन ज्ञानचंद कोठारी ने बताया  तपस्वीयों का सम्मान लाभार्थी बोहरा परिवार एवं संघ के पदाधिकारियों के द्वारा किया गया। मंगलवार को संवत्सरी महापर्व मनाया जाएगा और बुधवार को प्रातः 10:30 बजे सामूहिक क्षमापना का कार्यक्रम आयोजित होगा।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar