बेंगलुरु। आचार्यश्री देवेंद्रसागरसूरीश्वरजी ने चातुर्मासिक प्रवचन में मंगलवार को कहा कि मानव जीवन में संयमशीलता की आवश्यकता को सभी विचारशील व्यक्तियों ने स्वीकार किया है। साँसारिक व्यवहारों एवं सम्बन्धों को परिष्कृत तथा सुसंस्कृत रूप में स्थित रखने के लिए संयम की अत्यन्त आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि संसार के प्रत्येक क्षेत्र में जीवन के प्रत्येक पहलू पर सफलता, विकास एवं उत्थान की ओर अग्रसर होने के लिए संयम की भारी उपयोगिता है।
विश्व के महान पुरुषों की जीवनियों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि उन्होंने जीवन में जो भी सफलता, उन्नति, श्रेय, महानता, आत्म कल्याण आदि की प्राप्ति की, उनके कारणों में संयम शीलता की प्रधानता है। संयम के पथ पर अग्रसर होकर ही उन्होंने अपने जीवन को महान बनाया। आचार्यश्री ने कहा कि संयमशीलता के पथ पर चल कर ही मनुष्य सही मानव बनता है व देवता बनता है।
उन्होंने यह भी कहा कि अपने विकारों पर नियन्त्रण करने तथा हानिकारक आदतों से छुटकारा पाने के लिए जो चेष्टा, जो क्रिया की जाती है उसी का नाम संयम है।