चेन्नई. गोपालपुरम में स्थित भगवान महावीर वाटिका में विराजित कपिल मुनि ने कहा इस संसार में प्रतिपल अनेक जीव जन्म धारण करते हैं मगर जीवन को उपलब्ध होने वालों की संख्या बहुत अल्प ही होती है। जीवन को उपलब्ध होने का अर्थ सही मायने में यही है जिस जीवन में चारों ओर शांति और समता का वास हो। शांति वहीं संभव है जहाँ शक्ति और सामथ्र्य हो।
भीतर से सामथ्र्य के खत्म होने पर व्यक्ति निराशा और हताशा का शिकार बन जाता है। जीवन की इस दुर्बलता को खत्म करने का एकमात्र उपाय है सहनशीलता। जिंदगी के हर मोर्चे का मुकाबला करने के लिए परीषह विजय की साधना बेहद जरूरी है । जीवन में आगत कष्ट, दुख को समभाव से सहन करना ही परीषह विजय है। सहिष्णुता कमजोरी नहीं बल्कि व्यक्तित्व को निखारने वाला एक महत्वपूर्ण गुण है।
इस गुण के अभाव में व्यक्ति की सभी विशेषता अर्थहीन हो जाती हैं। जिसे सहना आता है वही जीवन को जीना जानता है। सहनशीलता एक ऐसी क्षमता है जो हमें विकट हालात में भी सक्रिय बनाये रखती है। सहिष्णुता की जीवन में बहुत ही उपयोगिता है। इन प्रतिकूलताओं के चलते हमें हरपल आगे बढऩा है तो सहनशक्ति का विकास करना होगा।
सहन शक्ति के विकास से व्यक्ति शक्तिशाली और समर्थ बनता है। जीवन शक्ति और सहनशक्ति दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। जीवन में आगत उतार-चढ़ाव को सहर्ष स्वीकार करने का सुखद परिणाम आनन्द की स्थिति हासिल होती है। जहां स्वीकार है वहां सुख है और जहाँ इंकार है वहां दु:ख के सिवाय कुछ भी नहीं है। कष्ट दु:ख को अपने कर्म का प्रतिफल समझ कर स्वीकार करना चाहिए। प्रतिकूल विचार, व्यक्ति और परिस्थितियां को सहना ही सहिष्णुता है।
सहिष्णुता अनेक सद्गुणों की जननी है। सहिष्णुता से जीवन शक्ति की वृद्धि होती है जो की आनन्द की अनुभूति का कारण बनती है। धीरता, गंभीरता, सहजता आदि सभी विशेषताओं का समावेश होता है। संचालन संघ मंत्री राजकुमार कोठारी ने किया । अध्यक्ष अमरचंद छाजेड़ ने सभी आगंतुकों का सत्कार किया।