नार्थ टाउन में चातुर्मासार्थ विराजित गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि अनंत अनंत उपकारी मोक्ष का मार्ग बताने वाले प्रभु महावीर स्वामी के पावन कमलों मे कोटिसः नमन। उन्ही के पद चिन्हों पर चलने वाले एकाभवतारी जयमल्ल जी म. सा के चरणो मे कोटि वन्दन, जिनेश्वर भगवान की वाणी 32 आगमों मे प्रतिबद्ध है। जिस वाणी को जन जन के कल्याण के लिए फरमायी वह जिनवाणी का लक्ष्य जीवो को सुख प्रदान करवाती है।
वास्तव मे सुखी होना है तो जिनवाणी सुनकर आचरण मे लेना । जिनवाणी मे धर्म झलकता है। ऐसे ऐसे अन्य जीव है कि जितनी जिनवाणी सुनाओ तो सुनते ही रहते हैं। न वो थकते न शरीर थकता। हर पल जिनवाणी के लिए तड़पते रहते है। ओर दुसरी तरह के लोग ऐसे भी है जो संघ समाज आदि के दबाव मे आते है लेकिन उनका जिनवाणी मे मन नही लगता।
जिनवाणी श्रवण करने से जीवन में, मन मे बदलाव आता है।
जिनवाणी श्रवण करने से कई जीव कर्मो से मुक्त हो चुके है। जीव के दुखी होने का कारण तृष्णा है। जीव के पास हर तरह की भौतिक सामग्री है फिर ओर भी खरीदने का सामर्थ्य है फिर भी दुखी है गाड़ी है, बंगले है, नोकर है, चाकर है, सब तरह भी 15 भौतिक सामग्री होते हुए भी उसे पूछो हो वह सुखी नही । वह अपनी दुख की कहानी सुनाता ही रहता है। उस कहानी का कोई अन्त नही। कोई बेटे से दुखी कोई बेटी से दुखी कोई बहु के दुखी, कोई शरीर से दुखी ज्यादा भौतिक साधनों से दुख बढ़ता है धटता नहीं।
घर में कार लाना सरल, ड्राइवर लाना सरल नही। अपने घर वालो से बढ़कर ड्राइवर की पूछ होती है। फिर भी नहीं टिकता। गाडी तो लाए में दुःख साथ मे दुःख की बाढ आ गई। इसी तृष्णाओ से जीव सुखी नही होता तृष्णाओ से दुःख बढ़ता ही है। ज्ञानी जन कहते है को कम करो तो ही सुख है।
शरीर भगवान ने दिया उसको सही रखे तो वह भी सुख का कारण है। लेकिन उससे तृप्त नही। पार्लर जाकर मेकअप करवा कर हिरोइन बनना चाहती है। वास्तवविक सुंदरता तो इच्छा निरोध मे है। तृष्णा व्यक्ति को पागल बना देती है।
भगवान ने कहा पदार्थों मे सुख न नही। सुख भीतर भरा पड़ा है।
बाहर के पदार्थों मे देखने के चक्कर मे वह अपनी आत्मा के सुख को नहीं भोग सकती सकता। अनुभव नहीं कर सकता। शांत व्यक्ति सुखी होता। तृष्णा व्यक्ति को नरक मे ले जाती है। संसार का जीव आरम्भ परिग्रह से दुखी है आरम्भ :- छे काय जीवो की हिसां करना आरम्भ है। आरम्भ के कारण घर मे क्लेश होता है। चार प्रकार के जीव है
अल्प आरम्भी अति आरम्भी, महाआरम्भी जिनवाणी श्रवण करके जीव तृष्णा को छोडे और अनन्त अनन्त सुख को प्राप्त करे।