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वासना में नहीं उपासना में रमे – साध्वी संयमलता

वासना में नहीं उपासना में रमे – साध्वी संयमलता

 पनवेल श्री संघ में विराजित श्रमण संघीय जैन दिवाकरिया महासाध्वी श्री संयमलताजी म. सा.,श्री अमितप्रज्ञाजी म. सा.,श्री कमलप्रज्ञाजी म. सा.,श्री सौरभप्रज्ञाजी म. सा. आदि ठाणा 4 के सानिध्य में धर्म सभा को संबोधित करते हुए महासती संयमलता ने अंग्रेजी वर्णमाला के द्वितीय अक्षर ‘B’ से ब्रह्मचर्य के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा- महापुरुषों ने ब्रह्मचर्य को जीवन और अब्रह्मचर्य को मृत्यु कहा है । ब्रम्हचर्य अमृत है और अब्रह्मचर्य जहर के समान है। भोग के युग में, फैशन के युग में, कलयुग में ब्रम्हचर्य का पालन होना कठिन है। विषय वासना पर ब्रेक लगाना कठिन है। महासती ने आगे कहा आज टीवी, मोबाइल, इंटरनेट, फेसबुक के कारण व्यक्ति दिन-रात भागों में आसक्त रहता है। आज के जमाने के व्यक्ति का मन दिन-रात अश्लील बातों में, विषय विकार में डूबा रहता है। विषय विकार के सेवन के कारण व्यक्ति शक्ति से दुर्बल होता जाता है।

 महासती ने आगे तपस्विनी बहन की अनुमोदना करते हुए कहा तब करना कोई बच्चों का खेल नहीं है जो तपता है वही आत्मा के समीप पहुंचता है। रचना को छोड़ना, मन को मोड़ना, एवं कर्मों को तोड़ना यह काम कायरों का नहीं शूरवीरो का काम है। महासती कमलप्रज्ञा ने कहा जैन धर्म में कर्म का महत्वपूर्ण स्थान है। अपने सत्कर्म से व्यक्ति राम कृष्ण महावीर बन सकता है तो अपने दुष्कर्म से व्यक्ति रावण कंस गौशालक बन सकता है। हमें जन्मजात धार्मिक नहीं कर्म जात धार्मिक बनना है। जैन धर्म भाव पर टिका है। जैसे भाव होंगे वैसे ही भव होंगे। दोपहर में ‘खुल जा सिम सिम’ प्रतियोगिता का आयोजन हुआ जिसमें 125 महिलाओं ने भाग लिया। धर्म सभा में चंद्रकला कुचेरिया ने 8 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए।

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