जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने आदिनाथ भगवान की प्रार्थना मे आये भावों की विवेचना करते हुए कहा कि वीतराग देव की वाणी पूर्णतः अध्यातम को लेकर होती है। उनके वचनों मे तनिक मात्र भी किसी भी प्रकार की सांसारिक बातों का उल्लेख ही नहीं मिलता इसीलिए वह जिनवाणी कहलाती है! वर्तमान समय मे दुनिया के लोगों में वह भाषा नहीं आपाती जो पूर्णतः आत्म कल्याण की होती है! कारण कि संसारी जीवों मे राग द्वेष का अंश मौजूद रहता है जब कि वे पूर्णतः मुक्त होते है! यही कारण है कि उनका एक एक शब्द मन मे त्याग वराग्य को जागृत करता है!
मुनि जी ने वाणी पर विचार रखते हुए कहा हमारी वाणी मे असत्य का हिंसा का लोभ का, विकार का प्रयोग नहीं होना चाहिए, वाणी मे मधुरता व मिठास होना चाहिए इतिहास गवाह है महाभारत का मूल कारण ही अपशब्द रहे है अगर अपशब्द न बोले जाते तो शायद विनाश भीनही होता, आज घर परिवार संघ समाज में टूट फूट बढ़ती जा रही है उसका मूल कारण वाणी व्यवहार ही है! सत्य वाणी को धर्म व असत्य वाणी को पाप कहा जाता है दिनभर असत्य का प्रयोग कर हम निरर्थक पाप के भागीदार बनते है! स्वयं भी दुखी होते है एवं दूसरों को भी दुःख पंहुचाते है!
आज आवश्यकता है सर्व प्रथम हम अपनी वाणी मे सुधार लाये तभी मन व तन मे भी शान्ति उपलब्ध हो पायेगी! सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी ने भक्तामर जी का सुन्दर वर्णन विवेचन प्रदान किया, भक्तामर जी का एक एक शब्द अमृत व मोक्ष का प्रदाता है इस भव परभव को सुखी बनाने वाला है!भावों मे उत्कृष्टता प्रदान करने वाला है इसके अड़तालिस श्लोको से मानसिक वाचिक सम्पूर्ण कष्टों का निवारण होता है आवश्यकता है विशवास के साथ इसका पठन पाठन करने की! महामंत्री उमेश जैन द्वारा स्वागत व सूचनाएं प्रदान की गई।