जैन परम्परा का महान पर्व पर्युषण की आराधना के क्रम में न्यू तेरापंथ भवन में आज चतुर्थ दिवस वाणी संयम दिवस के रूप में मनाया गया । इस अवसर पर मुनि मोहजीत कुमारजी ने फरमाया कि भाषा के प्रयोग से मानव मानव में संबन्ध स्थापित करता है। बोलना एक कला है परन्तु मौन एक तप है। मौन एक साधना है। बोलने से न बोलने का मूल्य अधिक है। आज के दिवस से यह प्रेरणा लें कि हम सभी सोचकर बोलें, ना की बोलकर सोचें । वाणी का संयम दीनता नहीं साधना है। वाणी व्यक्तित्व का दर्पण है। इसे साफ और पवित्र रखें। अनावश्यक वाणी और कटु वाणी से दूर रहना भी वाणी संयम की साधना है।
मुनि भव्य कुमारजी ने वाणी संयम पर गीत की प्रस्तुति के साथ भाषा विवेक का सुन्दर संबोध दिया। मुनि जयेश कुमारजी ने घटना प्रसंग के माध्यम से अयाचित वाणी के दुष्प्रभाव का चित्रण किया। मुनि मोहजीत कुमार ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा के प्रसंग को सुंदर गीतावली के माध्यम से प्रस्तुति दी। इस अवसर पर अनेक तपस्वी जनों ने बड़े तप का प्रत्याख्यान किया और विशाल जनमेदिनी ने उनका अनुमोदन किया।
रात्रिकालीन उपक्रम में अंताक्षरी का आयोजन किया गया। जिसमें श्रावक-श्राविकाओं ने बड़ी संख्या में उत्साह से भाग लेकर अपनी प्रस्तुतियों से शमां बांधा। पर्युषण पर्व की व्वयस्था में तेरापंथ सभा,महिला मंडल और युवक परिषद के सदस्य लगे हुए है। समाचार प्रदाता : नवीन सालेचा