चेन्नई. तिरुवल्लूर में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा कि वचन बड़े अनमोल होते हैं।बोलने से पहले हर शब्द को तोल लेना चाहिए।
जो तोल-मोल कर बोलता है वह कभी अपशब्द और कटु वचन का प्रयोग नहीं करता। बुद्धिमान वही होता है जो बोलने से पहले सोचता है।
मुंह से उच्चारित वचन कभी वापस नहीं लौटता, इसलिए पहले सोचो फिर बोलो।
मूक पशु नहीं बोलने के कारण कष्ट झेलता है जबकि मनुष्य इसलिए कष्ट झेलता है कि बोलते समय वह विवेक नहीं रखता।
मुनि ने कहा १८ पापों में से छह पाप वाणी से संबंध रखते हैं। कलह इत्यादि का मूल कारण कड़वे वचन होते हैं। शब्दों के दांत नहीं होते लेकिन दर्द काटने से भी ज्यादा पैदा करते हैं। उन्होंने कहा सत्य की हमेशा विजय होती है जबकि झूठ कभी टिकता नहीं। एक झूठ को छिपाने के लिए कई झूठ बोलने पड़ते हैं जबकि सत्य कभी बदलता नहीं।
श्रावक के वचन व्यवहार में कहा जाता है कि उसे थोड़ा बोलना चाहिए। मौन रहने में ज्यादा भलाई है। मौन रखने से ऊर्जा कम खर्च होती है और वचन सिद्ध रूपी लब्धि भी प्राप्त हो सकती है।