चेन्नई. कोडम्बाक्कम-वडपालनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा संसार में कोई भी वस्तु बुरी नहीं होती, लेकिन उसके प्रति अति होना बुरा है। खाने की वस्तु हो या पहनने की, उसके प्रति अति मनुष्य का जीवन बेकार कर देती है।
गुरुवाणी को सुनकर पुरुषार्थ करना मुश्किल होता है, लेकिन इससे जीवन को नई पहचान मिलती है। ऐसे मनुष्य को शाश्वत सुख की अनुभूति होती है। लोभ न जाने इंसान से क्या क्या पाप करा रहा है, जबकि अंत समय में इसका कोई मोल नहीं है। सुख की तलाश में मनुष्य भटक रहा है लेकिन असल सुख की अनुभूति गुरु चरणों में होती है।
भगवान महावीर कहते हैं लोभ का कभी अंत नहीं होगा इसलिए इससे दूर होने वाला मानव सुखी होगा। किसी वस्तु से उतना ही लगाव होना चाहिए जितना जरूरी हो। अलमारी में सैकड़ों साडिय़ां होने के बाद भी दुकान पर जाने पर महिलाएं साडिय़ां ले आती हंै जो लोभ है। लेना बुरी बात नहीं पर लेने के बाद पहले से रखी साडिय़ों को जरूरतमंदों को दे देनी चाहिए।
मनुष्य की परिवार और प्रतिष्ठा के प्रति आसक्ति कभी समाप्त नहीं होती। अगर यह समाप्त हो जाये तो समझो सुना हुआ प्रवचन सार्थक हो गया। धन कमा कर तिजोरी भरो लेकिन उसके प्रति आसक्ति मत रखो। जैसे कीचड़ में खिलने वाले कमल पर उसका असर नही होता, वैसे ही मनुष्य को गृहस्थ जीवन में रहकर आसक्ति से बचना चाहिए। आसक्ति का प्रभाव मनुष्य को नरक मार्ग पर बढ़ाता है।
उन्होंने कहा कि जिस प्रकार ओस की बूंदें देखने में अच्छी लगती है ंऔर चमकदार होती हंै, लेकिन हवा के हल्के झोंके से उसका अस्तित्व खत्म हो जाता है, ठीक उसी प्रकार मनुष्य का जीवन होता है। कब कहां कैसे ये सांसें थम जाए किसी को पता नहीं होता। इसलिए जब तक जीवन है तब तक बुरे कामों से बचना चाहिए। जीवन में आगे वही जाता है जो बताये मार्ग का अनुसरण करता है।