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वस्तु का स्वभाव ही धर्म है वैसे तो विवेक में धर्म है यतना में, अंहिसा में, भी धर्म है

वस्तु का स्वभाव ही धर्म है वैसे तो विवेक में धर्म है यतना में, अंहिसा में, भी धर्म है

जैन दिवाकर ,प्रसिद्ध वक्ता गुरुदेव श्री चौथ मल जी म0 के आज्ञानुवर्ती, चौथे आरे की बानगी, घोर तपस्वी श्री रोशन लाल जी म0 के सुशिष्य एवं संथारा साधक तपस्वी भन्ते श्री प्रेम मुनि जी म0 के गुरु भ्राता, स्पस्ट वक्ता लौह पुरुष, संथारा विशेषज्ञ, गुरुदेव श्री धर्म मुनि जी म0, सेवामूर्ति श्री चिराग मुनि जी,श्री चंद्रेश मुनि जी म0 ठाणे,3,जैन स्थानक नरवाना जिला जींद ( हरियाणा ) में चातुर्मास हेतु सुखसाता से विराजमान हैं।

प्रधान, श्री सज्जन जैन महामंत्री, श्री हरिओम जैन धर्म की व्यख्या करते हुए गुरु म0 ने फरमाया की धर्म क्या है वस्तु का स्वभाव ही धर्म है वैसे तो विवेक में धर्म है यतना में, अंहिसा में, भी धर्म है गुरु म0 ने उबले हुए पानी का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे गर्म पानी अपने स्वभाव अनुसार ठंडा हो जाता है वो पानी का धर्म है आज गुरु दिवाकर दरबार मे इंदौर, सवाई माधोपुर, कोटा, एवं अन्य काफी क्षेत्रों से श्रावक गुरु म0 के प्रवचनों एवं दर्शनो हेतु आए हुए थे गुरु म0 खूब किरपा क्षेत्र पर बरषा रहे हैं।

      हर रोज  24 घंटे का घरों के अन्दर श्री नवकार महामन्त्र का जाप, चल रहा है तपस्वी तपस्या में आगे से आगे बढ रहे हैं। ये धर्म मुनि नहीं, कोई अवतार हैं रख दें जिस के सिर पे हाथ, उसका बेड़ा पार हैं।

     प्रार्थना सुबह ,5,40 पर

    प्रवचन सुबह 8,00 बजे

सभी एक दूसरे को प्रेरणा दे धर्म लाभ लें

       जय जिनेंद्र

महामंत्री हरिओम जैन

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