बेंगलुरु। श्रेष्ठ श्रावक को 11 कर्तव्य वर्ष में एक बार तो जरूर करना ही चाहिए। इन कर्तव्यों में पहला संघ पूजा, दूसरा साधर्मिक भक्ति, तीसरा यात्रा, चौथा स्नात्र महोत्सव, पांचवां देव द्रव्य ज्ञान, छठा महापूजा, सातवां रात्रि जागरण, आठवां श्रुत पूजा, नवम उजमना, दसवां तीर्थ प्रभावना, ग्यारहवां आलोचना है।
यह विचार आचार्यश्री देवेंद्रसागरसुरीजी ने मंगलवार को पर्युषण पर्व के दूसरे दिन व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि गुरुवार से कल्पसूत्र का वांचन किया जाएगा। आचार्यश्री ने बताया हर श्रावक को अपनी क्षमतानुसार वर्ष में एक बार चतुर्विद संघ की कम से कम तिलक लगा कर पूजा करनी ही चाहिए। इससे शासन की स्थापना बनी रहती है।
संघ पूजन से दूसरों को भी सद्प्रेरणा मिलती है। जिस तरह वस्तु पाल तेजपाल, जिनदास ने साधर्मिक भक्ति कर अनेक को धर्म में स्थिर किया। उसी तरह सभी को साधर्मिक भक्ति जरूर करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कल्पसूत्र को सुनने व उसकी भक्ति करने से 8 भवों में मोक्ष मिलता है, ऐसा शास्त्रों में उल्लेख है।
कल्पसूत्र ले जाकर रात्रि जागरण, उसकी श्रुत पूजा बहुत लाभदायक होता है। किसी भी तप के पूर्ण होने के बीच उसका भाव पूर्वक उजमना तप के उल्लास को प्रकट करने के लिए करना ही चाहिए। इसमें प्रयुक्त सामग्री साधु भगवंत के लिए भी शुद्ध होती है।
साधु साध्वी भगवंत व तीर्थ का सम्मान व भक्ति हमारा मुख्य कर्तव्य है। किए हुए पापों की आलोचना आचार्य भगवंतों से लेने से हमारे द्वारा की गई क्षमापना उपयुक्त होती है व फलीभूत भी होती है।