काकीनाडा. यहां राजेन्द्र जैन भवन में गुरुवार को मुनि संयमरत्न विजय ने कहा हमारी जीवात्मा ने काया के लिए हिंसा-चोरी की, झूठ बोला, ब्रह्मचर्य खंडित किया, हर प्रकार का परिग्रह धारण किया, रंग-बिरंगे वस्त्र एवं कीमती आभूषण पहनाए, सुगंधित तेल-इत्र लगाए, भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यंजन खिलाए और अनेक प्रकार के ठंडे शर्बत पिलाए, इतना होने पर भी यह शरीर धोखा देकर चला जाता है।
अनंत काल से शरीर किसी के साथ नहीं गई, मात्र पुण्य और पाप ही साथ में चले हैं, इसलिए जो भक्ति रूपी नाव में बैठ जाता है, वह संसार सागर से पार उतर जाता है। सच्चे मन से किया गया परमात्मा का सिमरण ही हमारे मरण को सुधार सकता है।
जिसका मन संयमित है,उसकी इंद्रियां स्वत: ही नियंत्रित हो जाती हैं। तेरापंथ संघ के आचार्य महाश्रमण के शिष्य मुनि अर्हत कुमार ने कहा है क्रोध से प्रीति का, मान से विनय का, माया से सरलता का, लोभ से सबका नाश हो जाता है। जहां मान है, वहां विनय नहीं रहता।
खुश होकर कार्य करने से खुशियां खुद ही प्राप्त हो जाती हंै। हम नाम के लिए काम न करें। मुनि भरतकुमार ने कहा अज्ञान व्यक्ति को मूर्ख बना देता है, अज्ञान ही सबसे बड़ा दु:ख है।