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लेश्या को मात्र सुने नहीं, समझे और जिएं – साध्वी डॉ मंगलप्रज्ञा

लेश्या को मात्र सुने नहीं, समझे और जिएं – साध्वी डॉ मंगलप्रज्ञा
रूपांतरण शिल्पशाला लेश्या कार्यशाला का हुआ आयोजन
 अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के तत्वावधान में तेरापंथ महिला मंडल चेन्नई की आयोजना में साध्वी श्री डॉ. मंगलप्रज्ञाजी के सान्निध्य में ‘रूपांतरण शिल्पशाला लेश्या कार्यशाला’ नार्थ टाउन में आयोजित की गयी। कार्यशाला की शुरुआत साध्वीश्रीजी के द्वारा नमस्कार महामंत्र के उच्चारण से हुई। महिला मंडल की बहनों द्वारा प्रेरणा गीत का संगान किया गया। अध्यक्षा पुष्पा हिरण ने सभी का स्वागत करते हुए अपने विचार व्यक्त किए।
साध्वी श्री डॉ. मंगलप्रज्ञाजी ने अपने उदबोधन में कहा लेश्या से पहले आत्मा को समझना आवश्यक है। आत्मा विशुद्ध है, मलिन नहीं। संसार परिभ्रमण के कारण आत्मा मलिन रहती है। भ्रमण का कारण कार्मण शरीर है। शुद्ध चेतना को बाहर आने में बाधक अप्रशस्त लेश्या है। क्षायक या क्षायोपशम के वक्त शुभ लेश्या का प्रकाश निकलता है। मोहनीय कर्म के उदय से लेश्या अशुभ लेश्या बनती है। सारे रंग अच्छे या बुरे नहीं होते। उत्तराध्यायन सूत्र के 34 वें अध्ययन में लेश्या पर विशेष जानकारी दी गयी है। स्पर्श, रस, गंध, वर्ण होते हैं। रंगों के बिना जीवन नहीं होता। जिस लेश्या में मृत्यु होती है, उसी लेश्या में अगले जन्म में जन्म होता है। मस्तिष्कीय  कोशिकाओं को प्रशिक्षित करके क्रोधादि स्वभाव को परिवर्तित किया जा सकता है। लेश्या में परिवर्तन होता रहता है।
जैन आगम साहित्य के कई प्रेरक प्रसंगों का उल्लेख करते हुए साध्वीश्रीजी ने कहा भाव धारा का लेश्या मात्र तात्विक सिद्धांत नहीं है। मात्र वेश परिवर्तन से व्यक्तित्व नहीं बदलता। शुद्ध भाव धारा से सम्यक व्यक्तित्व का विकास संभव है। पुरुषार्थ और प्रयोग से जीवन परिवर्तित किया जा सकता है। लेश्या को जीने के लिए प्रबल आलंबन बनाएं। साध्वीश्रीजी ने विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा “चंदेसु निम्मलयरा” का सफेद रंग के साथ प्रतिदिन 5 मिनट जप करने का प्रयास करें।
साध्वी डॉ राजुलप्रभाजी ने कहा जीवन विकास के लिए रंगों का विशेष प्रभाव होता है। स्वप्न के आधार पर भी रंग के द्वारा व्यक्तित्व को पढ़ा जा सकता है, अपने आप आभामंडल को पवित्र बनाया जा सकता है। साध्वी श्री चैतन्यप्रभाजी ने “प्राणी कर्म समो नहीं कोई” पुरानी ढाल का पुनरावर्तन करवाया। श्रीमती चंचल डागा ने “छह मित्रों की कहानी, महिला मंडल की जुबानी” जामुन के पेड़ की कहानी के माध्यम से कार्यक्रम की प्रस्तुति का सुंदर संचालन किया। श्रीमती वसंता बाबेल ने चैतन्य केंद्र पर नमस्कार महामंत्र के रंगो का महत्व बताया।
कार्यक्रम में अभातेममं राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्या श्रीमती मालाजी कातरेला की गरिमामय उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संचालन मंत्री रीमा सिंघवी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन राजेश्वरी रांका ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में महिला मंडल की बहनों के साथ नोर्थ टाउन की बहनों का भी विशेष सहयोग रहा।

            स्वरुप चन्द दाँती
प्रचार प्रसार प्रभारी
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, चेन्नई

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