कलाकुरिचि. यहां विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा कि मनुष्य को अपने धर्म का पालन करते हुए दूसरों के प्रति जीना सिखना चाहिए। अपने परिवार के लिए तो पशु-पक्षी भी कुछ ना कुछ करते है लेकिन मनुष्य का जन्म दूसरों का भलाई करने के लिए होता है।
जन्म के बाद हमारे लिए दुनिया में सब कुछ नया होता है अगर हमारे माता पिता हमें जन्म देने के बाद छोड़ दें तो शायद हम कभी आगे नहीं जा पाएंगे। प्रकृति बिना किसी चाह के हमें हवा, पानी प्रदान करती है जिसके बिना हम अधूरे होते हंै। प्रकृति भी यह सब कुछ देने के बाद बदले में कुछ लेने की चाह रखे तो बदले में कुछ भी देना असंभव होगा।
उसके बाद भी प्रकृति बिना किसी उम्मीद के हमे जीवन के लिए जरूरी हवा, पानी प्रदान करती रहती है। जैसे प्रकृति सब कुछ देकर किसी प्रकार की उम्मीद नहीं रखती उसी प्रकार निस्वार्थ भाव हमे भी दूसरों के प्रति होना चाहिए।
मनुष्य अगर अपने परिवार वालों के लिए सब कुछ कर रहा है तो यह तो पशु पक्षी भी कर ही लेते है लेकिन मनुष्य का जन्म पाने के बाद हमे दूसरों के प्रति दयालुता दिखानी ही चाहिए। इंसान एक दूसरे का सहयोग करते हुए ही आगे निकल सकता है, स्वार्थी व्यक्ति वहीं पर पहुंच जाता है जहां से उसने चलना शुरू किया हो। किसी व्यक्ति से, किसी प्रकार की राग द्वेष की भावना नहीं रखनी चाहिए।
जो इंसान इन बातों से बचेगा उसे सफलता मिलती जाएगी। जीवन को अर्पण, दर्पण और समर्पण के तौर पर जीना चाहिए। अगर व्यक्ति अपने जीवन में सुधार चाहता है तो उसे लेने की चाह में न्यूनतम और देने में अधिकतम रखना चाहिए। प्रकृति यही सिखाती है कि लेने के साथ-साथ देना भी सीखो।