सभी श्रद्धालुओं ने पांडाल में किया माता-पिता को पंचांग प्रणाम, हजारों लोगों ने रोज परोपकार करने का लिया संकल्प
दुर्ग, 5 जुलाई। राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ सागर जी महाराज ने कहा कि अगर हम पेंसिल बनकर किसी के लिए सुख नहीं लिख सकते तो कम-से-कम रबर बनकर उनके दुख तो मिटा ही सकते हैं। घर में खाना बनाते समय एक मुट्ठी आटा अतिरिक्त भिगोएँ और सुबह पूजा करते समय 10 रुपए दूसरों की मदद के लिए गुल्लक में डालें। एक मुट्ठी आटे की रोटियाँ तो दुकान जाते समय गाय-कुत्तों को डाल दें और नगद राशि को इकट्ठा होने पर किसी बीमार या अपाहिज की मदद में लगा दें। मात्र नौ महिने में आपके सारे ग्रह-गोचर अनुकूल हो जाएँगे। संत प्रवर मंगलवार को सकल जैन समाज द्वारा जिला कचहरी के पीछे स्थित ऋषभ नगर मैदान में आयोजित चार दिवसीय जीने की कला प्रवचन माला के समापन पर हजारों सत्संग प्रेमी भाई बहनों को घर को कैसे बनाएं जीवन को मालामाल विषय पर संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि रास्ते से गुजरते समय मंदिर आने पर आप प्रार्थना में हाथ जोड़ें और अगर कोई एंबुलेंस गुजऱती नजऱ आए तो उसे देखकर उसके लिए ईश्वर से दुआ अवश्य करें। संभव है आपकी दुआ उसे नया जीवन दे दे। अगर आप किसी मज़दूर से दिनभर मेहनत करवाते हैं तो उसका पसीना सूखे उससे पहले उसे उसका मेहनताना दे दीजिए। किसी के मेहनताने को दबाना हमारे आते हुए भाग्य के कदमों पर दो कील ठोकना है। विद्यालय भी ईश्वर के ही मंदिर हुआ करते हैं, पर विद्यालय बनाना हर किसी के बूते की बात नहीं होती। आप केवल किसी एक गरीब बच्चे की पढ़ाई को गोद ले लीजिए, आपको विद्यालय बनाने जैसा पुण्य ही मिलेगा।
राष्ट्रसंत ने कहा कि दूध का सार मलाई है, पर जीवन का सार दूसरों की भलाई है। हमें रोज छोटा-मोटा ही सही पर एक भलाई का काम जरुर करना चाहिए। बिल गेट्स और अजीम प्रेमजी जैसे अमीरों ने दुनिया की भलाई के लिए हजारों करोड रुपयों की चैरिटी की है। आप फूल-पांखुरी ही सही, चैरिटी के काम अवश्य करें। दुनिया में कुछ लोग खाकर राजी होते हैं, कुछ लोग खिलाकर। आप प्रभु से प्रार्थना कीजिए कि प्रभु सदा इतना समर्थ बनाए रखना कि मैं औरों को खिलाकर खुश होने का सौभाग्य प्राप्त करूँ।
इस अवसर पर संत प्रवर ने युवा पीढ़ी को प्रतिदिन माता-पिता को पंचांग प्रणाम करने और प्रभु की प्रार्थना करने की प्रेरणा दी। प्रवचन से प्रभावित होकर सभी श्रद्धालुओं ने भाव पूर्वक माता-पिता को पंचांग प्रणाम किया और प्रतिदिन प्रणाम करने व परोपकार करने का संकल्प लिया।प्रवचन के बीच जब संत प्रवर ने नहीं चाहिए दिल दुखाना किसी का, सदा ना रहा है सदा ना रहेगा जमाना किसी का….भजन गुनगुनाया तो श्रद्धालु हाथ उठाकर भक्ति में झूमने लगे।
इस दौरान डॉ मुनि शांतिप्रिय सागर जी महाराज ने कहा कि इंसान की पहचान ऊँचे पहनावे से नहीं ऊँची जुबान से होती है। हम शब्दों को संभालकर बोलें। शब्दों में बड़ी जान होती है। इन्हीं से आरती, अरदास और अजान होती है। ये समंदर के वे मोती हैं जिनसे अच्छे आदमी की पहचान होती है। उन्होंने कहा कि बोलने की कला राम से सीखो। जहाँ रावण ने कड़क जबान से अपने सगे भाई विभीषण को खो दिया वहीं राम ने मीठी जबान से दुश्मन के भाई को भी अपना बना लिया। अगर द्रोपदी भी दुर्योधन पर ‘अंधे का बेटा अंधा’ कहने का व्यग्ंय बाण न छोड़ती तो शायद न उसका चीरहरण होता न महाभारत का युद्ध छिड़ता।
उन्होंने कहा कि बोलने की कला में ही लोकप्रियता का राज छिपा हुआ है। हमारे करियर में चेहरे की खूबसूरती की भूमिका दस प्रतिशत होती है, पर वाणी की खूबसूरती की भूमिका नब्बे प्रतिशत। अगर काला व्यक्ति भी सही ढंग से बोलेगा तो लोगों को सुहाएगा और गोरा व्यक्ति अंट-संट बोलेगा तो लोगों को खटकेगा। ग्राहक भी उसी दुकान पर ज्यादा आते हैं जहाँ मिठास भरा व्यवहार होता है और घर में भी वही बहू सास को ज्यादा सुहाती है जो मिठास भरी भाषा बोलती है। उन्होंने कहा कि किसी भी रिश्ते के टूटने के पीछे धन, दौलत, जमीन-जायदाद का कम, कड़वी जबान का हाथ ज्यादा हुआ करता है। व्यक्ति जबान का सही उपयोग करके टूटे रिश्तों को भी सांध सकता है और बिगड़े माहौल को अपने अनुकूल बना सकता है।
किसी पर भी व्यंग्य मत कसिए-संतप्रवर ने कहा कि हम किसी को सुख पहुँचाएँ तो अच्छी बात है, पर किसी पर व्यंग्य कसकर उसे दुख भूलचूककर भी न पहुँचाएँ। हम तो व्यंग्य भरी और टेढ़ी बात बोलकर खिसक जाते हैं, पर इससे किसी के दिल को कितनी ठेस पहुँचती है उसका हम अनुमान लगा नहीं पाते। हमें केवल बोलना ही नहीं आना चाहिए, वरन् क्या बोलना, कब बोलना, कैसे बोलना यह भी आना चाहिए।
बोलने से पहले मुस्कुराएँ एवं प्रणाम करें-बोलने की कला सिखाते हुए संतप्रवर ने कहा कि बोलने से पहले अपने चेहरे और हाथों की स्थिति ठीक कर लें। पहले मुस्कुराकर प्रणाम करें फिर बोलें, यह आपकी वाणी को हजार गुना प्रभावशाली बना देगा। माइक पर बोलने में संकोच न रखने की सीख देते हुए संतप्रवर ने कहा कि कुछ लोग मंच पर आकर बोलने से डरते हैं। शोले फिल्म के इस डॉयलोग को सदा याद रखें, जो डर गया सो मर गया। जब हम चार लोगों के साथ आराम से बात कर सकते हैं तो चार सौ लोगों के बीच बात क्यों नहीं कर सकते। बोलने से पहले दिमाग में तैयारी कर लें। होमवर्क जितना मजबूत होगा हम उतनी ही मजबूती से बोल पाएँगे।
जब भी बोलें सम्मान देते हुए बोलें-संतप्रवर ने सम्मान के साथ बोलने की प्रेरणा देते हुए कहा कि जब भी बोलें सबको सम्मान देते हुए बोलें। माता-पिता का नाम बोलने से पहले ‘श्री व बाद में ‘जी लगाएँ। कर्मचारी तक को भी ‘आप कहकर बुलाएँ। जवाब देते समय हाँ या ना से पहले ‘जी लगाएँ। छोटा हो या बड़ा, नाम सम्मानपूर्वक पुकारें। भाषा में ‘प्लीज, ‘थेंक्यू, ‘सॉरी जैसे शब्दों का भरपूर इस्तेमाल करें। शिष्ट, इष्ट और मिष्ट भाषा इंसान को औरों के दिलों में सदा के लिए अमर कर देती है।
मीठो मीठो बोल थारो कांई लागै… भजन पर खड़े होकर झूमे सत्संंग-प्रवचन के दौरान जब मुनिप्रवर ने ‘मीठो मीठो बोल थारो कांई लागै, कांई लागेजी थारो कांई लागै। संसार कोई रो घर नहीं, कद निकलै प्राण खबर नहीं…’ का मारवाड़ी भजन सुनाया तो सत्संगप्रेमी खड़े होकर झूमने लगे।
सकल जैन समाज के इस भव्य प्रवचन श्रृंखला को सफल बनाने के लिए आयोजन आयोजन समिति के सदस्यों के सम्मान में उपस्थित जन समुदाय ने 1 मिनट तक करतल ध्वनि बजा कर आयोजक सदस्यों का सम्मान किया। सकल जैन समाज के प्रचार प्रसार प्रमुख नवीन संचेती ने जानकारी देते हुए बताया। कार्यक्रम में संघ के अनेक सदस्य विशेष रूप से उपस्थित थे। मंच संचालन और संतों का स्वागत आभार अध्यक्ष महेंद्र दुग्गढ़ ने किया। श्री संचेती ने बताया राष्ट्रसंतों ने किया रायपुर की ओर विहार – राष्ट्रसंतों ने महा मांगलिक देकर दुर्ग से रायपुर की ओर विहार किया।
वे बुधवार को सुबह 9:00 बजे वैशाली नगर जैन स्थानक के बाहर स्थित विशाल पांडाल में जनसभा को संबोधित करेंगे। वे गुरुवार को भिलाई-3 में श्रद्धालुओं को प्रवचन देते हुए शुक्रवार को कैवल्यधाम तीर्थ पहुंचेंगे। उनका 10 जुलाई रविवार को रायपुर के एम जी रोड स्थित जैन दादावाड़ी से भव्य चातुर्मास नगर प्रवेश होगा और बुढ़ापारा स्थित आउटडोर स्टेडियम में 52 दिवसीय सत्संग महाकुंभ का श्रीगणेश होगा जिसमें दुर्ग से सैकड़ों श्रद्धालु भाई-बहन भाग लेंगे।