चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा रोग शत्रु की तरह हैं। जैसे योद्धा शत्रु पर वार कर उसके अंग विच्छेद कर देता है उसी प्रकार रोग भी व्यक्ति के अंगों का विच्छेद कर देता है।
आयु टूटे हुए घड़े से रिसते पानी की तरह पल-पल खत्म हो रही है और मृत्यु नजदीक आ रही है। इतना होने के बावजूद मानव परलोक की बिना चिंता किए प्रमाद की प्रगाढ़ निद्रा में सोया हुआ है जो महान आश्चर्य है।
बाकी सब अशाश्वत हैं जिनको स्थान छोडऩा पड़ता है। आत्मा को न तो जलाया व काटा जा सकता है और न ही इसका कोई वर्ण, गंध व स्पर्श है। यह अजन्मा और अविनाशी है। इसके केवल अंतर्चक्षुओं से ही देखा जा सकता है यह चरम चक्षुओं का विषय नहीं है।
आत्मा द्वारा ही आत्मा को देखा जा सकता है। आत्मा का न तो कभी जन्म होता है और न ही मृत्यु, जन्म और मरण को मात्र इस औदारिक शरीर की होती है। यह शरीर तो केवल आत्मा के लिए धर्म करने एवं कर्म निर्जरा कर मोक्ष प्राप्ति का साधन है।