चेन्नई. न्यू वाशरमैनपेट जैन स्थानक में विराजित साध्वी साक्षीज्योति ने कहा मनुष्य का परम सौभाग्य या परम दुर्भाग्य दोनों एक ही शब्द में छिपे हैं, वह शब्द है रिश्ता। रिश्ता न तो नरक में होता है और नही देवगति में। देवलोक में रहने वाले देवता कुछ बातों की इच्छा करते हैं।
उन्हीं में से एक है हमें भी मानव जन्म मिले। मुझे गर्भावास में रहना पड़ेगा, यह सोचकर देवता निराश व व्यथित भी होते हैं फिर भी उनकी यह चाह रहती है मुझे मानव जन्म मिले ताकि देवलोक में जो नहीं मिला वह मिल जाए।
मां की गोद में सोने का सुख देवताओं को नहीं मिलता। पिता के प्रेम का सुख, भाई-बहन के स्नेह ये उनको नहीं मिलता। ये सुख केवल कर्मभूमि में ही हैं। रिश्तों का यह उपहार केवल तीर्थंकरों को मिला हुआ है। साध्वी ने कहा रिश्तों को संभालें। रिश्ते बिगाडेंगे तो केवल एक जिंदगी नहीं बल्कि जन्म-जन्म बिगड़ जाएंगे।
इसलिए पहली कोई जरूरत है तो वह है रिश्तों को संभालने की। जहां रिश्ते सौभाग्य से जुड़े हुए होते हैं वहां आदमी बिना बुलाए ही पहुंच जाता है। इसलिए रिश्तों को जैसे बच्चे दिल से जीते हैं वैसे जीएं।
इसके लिए दिमाग को साइड में रखना पड़ता है। जहां दिमाग से रिश्ते निभाने की कोशिश करते हैं वहां रिश्ते एक दिन टूट ही जाते हैं। इसलिए भगवान कहते हैं रिश्तों में कड़वाहट नहीं मिठास लाएं उसी से आनंद मंगल की बहार आएगी।