रायपुरम जैन भवन में चातुर्मासार्थ विराजित पुज्य जयतिलक जी म सा ने बताया कि ज्ञान तारे और अज्ञान डुबोने वाला! सम्यादर्शन चारित्र मोक्ष मार्ग दर्शन होगा तो ज्ञान होगा । ज्ञान आचरण में आयेगा जो मोक्ष मार्ग में सहायक है आयगा कोरा आचरण नहीं तार सकता। ज्ञान के साथ आचरण होने पर कार्य संपन्न हो सकता है। किसी भी कार्य को करने से लिए पहले देखना आवश्यक है। देखने से ज्ञान होगा। और उस ज्ञान से कार्य को संपन्न करने योग्य हो जाता है।
जंबू स्वामी जब पुच्छा करते सुधर्मा स्वामी से कहते है भगवन आपने भगवान महावीर को देखा उनके आचरण को देखा उनके ज्ञान को देखा कृपा करके
फरमाईए एक हलवा भी बनाना है तो उसकी विधि जानना आवश्यक है। जब तक देखा नहीं जाता है, ज्ञान नहीं होता है तब तक तो एक हलवा भी बनना मुश्किल है।
देखने के बाद विश्वास हो जाता है। हर बात में ज्ञान चाहिए! भगवान ने हर चीज का ज्ञान दिया! अज्ञानता में कर्म बंध होता है। यहाँ तक भगवान ने धर्मस्थान में प्रवेश की भी बात बताई यह छोटी सी विधि भी ज्ञान पूर्वक करले तो आठ कर्मों को क्षय करने में समर्थ है!
5 अभिगम सचित का त्याग, अचित का विवेक, उत्तराशन अंजली करण मन की एकाग्रता
से स्थानक में प्रवेश करे, तब सचित वस्तु का त्याग जैसे घडी, या और कोई वस्तु यहाँ तक रास्ते में आते समय भी सचित आदि पर पैर न पड़े इसका विवेक रखें। भावों को प्रज्जवलित करने में समय लगता है! घर से ही यतना पूर्वक चल कर आये इसके बावजूद कोई दोष लगा है तो उसका प्रतिक्रमण करो।
अचित का विवेक:- सामायिक उपकरण आसन, मुहपती, पूजनी आदि का विवेक पूर्वक उपयोग करो! उस समय भी कर्म निर्जरा होती है। स्थान को पुछकर यायना पूर्वक आसन बिछाये! हर चीज में काम में विधिपूर्वक यतनापूर्वक करे। भावपूर्वक कर्म निर्जरा होती है। पुजंनी को यतनापूर्वक इस्तेमाल करे! पूजंनी के अन्दर शासन देवी का वास रहता है!
मुख वस्तिर्कि (उत्तरासन):- मुख वस्त्रीका के बिना स्थानक में प्रवेश नहीं करना वस्त्र मर्यादित हो। जैसे वस्त्र अनिवार्य है वैसे ही मुहंपत्ति भी अनिवार्य है। आठ कर्म की निर्जरा करने वाली है मुहपती । अत्तः उसमें आठ पट होते है जिससे छ काय के जीवों की यतना होती है! यह छोटी 2 विधि उत्कृष्ट भावों को ले आती है! जैसे नवकार मंत्र सीखाना अनिवार्य है वैसे ही धर्मस्थान में प्रवेश की विधि भी आवश्यक है। शादी ब्याह में कितनी विधि निभानी पड़ती है। तोरण मारते है यह सारी विधि आप करते है जबकि यहाँ पर कर्म बंद होता है। किंतु धर्मस्थान में प्रवेश करते समय विधि का पालन आवश्यक है!
अंजलीकरण:- प्रवेश करने के पश्चात जब गुरु भगवंत पर दृष्टि पडे तो दोनो हाथ स्वतः जुड़ जाने चाहिए। वन्दन करे तो तीर्थकंर गोत्र का बंध हो सकता है। मासखमण से भी अधिक लाभ हो सकता है।
जब स्थानक प्रवेश की विधि से ही इतनी कर्म निर्जरा संभव है। तो सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषध आदि क्रिया विधि सहित करने करने से कितने महान कर्मो की निर्जरा होगी। इसे जाने एवं आचरण में उतारे एवं स्वयं की आत्मा का कल्याण करे!
मंत्री नरेंद्र मरलेचा ने बताया कि 18 सितंबर से 20 सितंबर तक रायपुरम जैन भवन में श्री
यस.यस जैन ट्रस्ट द्वारा जयमल जयन्ती त्रिदिवसीय कार्यक्रम के रूप में मनाई जाएगी। प्रचार प्रसार मंत्री ज्ञानचंद कोठारी ने सभी को जयमल जयन्ती के उपलक्ष्य में तेला तप की आराधना करने को कहा। प्रथम दिन सामायिक दिवस, द्वीतिय दिन गुप्त दान दिवस, त्रितिय दिन अन्न दान दिवस के रूप में मनाई जाएगी।