बाबा बुढानाथ के प्रांगण में श्री रामकथा ज्ञान यज्ञ समिति भागलपुर के द्वारा आयोजित रामकथा के द्वितीय दिवस में काशी से पधारे समिति के संगरक्षक पंडित विजय शंकर चतुर्वेदी” बाल व्यास जी महाराज” ने अपने प्रवचन के दौरान कहा कि विधि-विधान पूर्वक की गई ईश्वर की अराधना पूजा उपासना का महत्व है मूल है जो चीज सबसे महत्वपूर्ण है वह यह है पूजा।
उपासना के साथ-साथ हमारा जीवन कैसा हमारा चिंतन चरित्र और व्यवहार कैसा है। व्यक्ति परिवार समाज राष्ट्र विश्व आदि के प्रति हमारा नजरिया कैसा हम पूजा राम की करें और काम रावण सरीखे करें। हम भक्ति कृष्ण की करें कर्म कंस की तरह करें तो या फिर कैसी भक्ति है।
[यह कैसी पूजा है कैसी उपासना है ऐसी पूजा उपासना से क्या लाभ यदि हम सचमुच ईश्वर के उपासक हैं तो हमें करुणा प्रेम सत्य न्याय पवित्रता आदि विशेषताएं अवश्य प्रकट होने चाहिए। हम ईश्वर की स्तुति चालीसा आरती करते हुए भगवान की इन्हीं विशेषताओं आदर्शों तथा सद्गुणों का बार-बार स्मरण भी तो इसलिए करते हैं कि वह विशेषताएं हम भी स्वयं के जीवन में धारण कर सके।
सदैव ईश्वर के बताए मार्ग पर चलते रहें रामचरितमानस की प्रस्तुति चौपाई में कहते हैं—
” निर्मल मन जन सो मोहि पावा
मोहि कपट छल छिद्र न भावा”
जिसका मन निर्मल है, पावन है वही मुझे प्राप्त करता है। मुझे कपट छल प्रपंच बिल्कुल भी नहीं सुहाता ईश्वर के मार्ग पर सच्चाई के मार्ग पर न चल पाने के कारण ही हम ईश्वर कृपा से वंचित हैं और व्यथित हैं। वस्तुतः अध्यात्म पथ के पति को साधकों व जिज्ञासाओं को यह बात हृदयम कर लेनी चाहिए कि ईश्वर सर्वव्यापी है सर्वज्ञ है सर्व शक्तिशाली है एवं सद्गुणों का समुच्चय है वे निर्गुण भी हैं और शगुन भी हैं साकार भी हैं और निराकार भी अनंत कोटि ब्रह्मांड के नायक हैं फिर ऐसे प्रभु को यहां हम वो पदार्थों के अर्पण मात्र से कैसे प्राप्त कर सकते हैं जो सिम सृष्टि के सृजनहार हैं पालनहार हैं भला हम उन्हें क्या दे सकते हैं।
रामकथा के संध्या कालीन सत्र पंडित ओमप्रकाश जी के “कौशल्या के जन्मे लालनमा अवध में बाजे बजनवा हो” कि सुरुवात हुई।
कार्यक्रम को सफल बनाने में श्री श्यामा प्रसाद घोष, श्री प्रभुदयाल टिबड़ेवाल, श्री दीपक घोष, श्री अभय घोष”लाल दा” ,श्री अमरनाथ मिश्रा,श्री अवध प्रसाद,श्री अभय घोष”सोनू”, श्री धरवीर सिन्हा, श्री अरुण राय, श्री भूप नारायण पाण्डेय,श्री शैलेश दास,चंदन कर्ण, प्रवक्ता प्रणव दास, एवमं मंच संचालन डॉ केशरी कुमार सिंह ने किया ।
काशी से पधारे पंडित विधासागर जी ने अपने प्रवचन में कहा कि भगवान श्री राम का जन्म भक्तों के हित के लिए हुआ है। श्रीराम का तीन रूप है एक प्रगट दूसरा जन्म तीसरा अवतार एक है भगवान की कथा दूसरा है चरित्र तीसरा है लीला प्रश्न है।
भगवान प्रगट होते है कि जन्म लेते है कि अवतार होता है लेकिन श्रीराम ने तीनों कार्य एक साथ किया प्रगट होकर माँ कौशल्या को कथा सुनाये, इसलिए भगवान का प्राकट्य केवल कौशल्या के हित के लिए हुए।
दूसरा श्रीराम का अवतार देवताओं के कष्ट के निवारण हेतु अवतार लेकर लीला के द्वारा राक्षसों का संघार किया, तीसरा भगवान प्रभु श्रीराम का जन्म हम संसार वालो को चरित्र दिखाकर मनुष्य के जीवन मे मानवता का जीवन जीने के लिए हमे बताया। इस प्रकार आज की कथा में विधासागर जी ने बताया कि कौशल्या के लिए प्रभु श्रीराम प्रगट हुए देवताओं और संतो के लिए अवतार लिए, महाराज दशरथ के लिए पुत्र के रूप में जन्म लिया।