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राजनेता के साथ- साथ धर्मनेता भी थे- गांधी जी एवं शास्त्रीजी: डॉ. वरुण मुनि

राजनेता के साथ- साथ धर्मनेता भी थे- गांधी जी एवं शास्त्रीजी: डॉ. वरुण मुनि

चेन्नई. धर्म में यदि राज नीति आ जाती है तो धर्म दूषित हो जाता है पर राजनीति में यदि धर्म आ जाए तो वह हितकारी बन जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एवं लाल बहादुर शास्त्री ऐसे ही व्यक्तित्व थे, जिन्होंने राजनीति को भी धर्मनीति से चलाने का प्रयास किया। यह विचार- ओजस्वी प्रवचनकार डॉ. वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा महात्मा गांधी का जीवन जैन संतों के उपदेशों से विशेष प्रभावित रहा। अपनी आत्म कथा में गांधी स्वयं लिखते हैं कि जैन संतों ने मुझे शराब, मांसाहार एवं पर स्त्री गमन की तीन प्रतिज्ञाएं करवाई। हालांकि इन तीनों ही क्षेत्रों में अग्नि परिक्षाएं मेरे समक्ष आई फिर भी यह प्रभु कृपा व गुरु कृपा ही थी कि मैं इन परीक्षाओं को बड़ी ही सरलता से पार कर गया।

प्रभु महावीर के ‘अहिंसा’ व “सत्य के उपदेश से उन्होंने देश को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करवाया। दूसरी ओर लाल बहादुर शास्त्री, जो भारत देश के एक महान प्रधानमंत्री सिद्ध हुए। इतने ऊंचे पद पर रहते हुए अपना जीवन उन्होंने बहुत ही सादगी के साथ बिताया। सादा जीवन ऊच्च विचार की लोकोक्ति उनके जीवन में चरितार्थ होती थी। जिस समय देश पर संकट के बादल मंडरा रहे थे, उन्होंने परिवार सहित केवल एक समय भोजन कर स्वयं भी देश वासियों के साथ उपवास किया। उन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया, जो इतिहास के पृष्ठों पर सदा अमर रहेगा। आज के इस युग में इन दोनों राजनेताओं का धर्म मय जीवन वास्तव में न केवल देश की जनता के लिए अपितु राजनेताओं के लिए भी आदर्श जीवन है।

साहुकारपेट श्री संघ के उपाध्यक्ष सुरेश कोठारी एवं उनकी धर्मपत्नी किरण कोठारी ने उप प्रवर्तक गुरुदेव पंकज मुनि से 26 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। श्रीसंघ के पदाधिकारियों द्वारा शॉल, माला, साफा, चूंदड़ी व सम्मान प्रतीक भेंट कर सम्मान किया गया।

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