माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सूत्र के दूसरे स्थान के 448वे सूत्र का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि दो चक्रवर्ती ऐसे हुए हैं जिन्होंने काम-भोगों का परित्याग नहीं किया और मृत्यु के बाद सातवें नरक लोक में अप्रतिष्ठित नैरयिक के रूप में उत्पन्न हुए| वर्तमान अवसर्पिणी काल में १२ चक्रवर्ती हुए| इनमें से दो चक्रवर्ती सुभूम और ब्रह्मदत जो की क्रमशः आठवें और बारहवें चक्रवर्ती थे! जो अंतिम समय में साधना नहीं करने के कारण मृत्यु के बाद सातवीं नरक में गये|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि चक्रवर्ती एक सत्ताधीश व्यक्ति होता है| दुनिया में चक्रवर्ती से बड़ा और कोई सत्ताधीश नहीं होता| चाहे वह प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति भी क्यों न हो| प्रभुत्व के क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान, छः खण्ड के अधिपति होते हैं, चवदह रत्नों के स्वामी होते हैं| पहले भरत , आठवें सुभूम और बारहवें ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती हुए! भौतिक जगत के सर्वोच्च व्यक्ति, दो चक्रवर्ती मरने के बाद सातवीं नरक में गए, आठ चक्रवर्ती मोक्ष और दो देव गति को प्राप्त हुए हैं! इनमें से तीन चक्रवर्ती पद के साथ-साथ तीर्थंकर पद को भी प्राप्त हुए हैं, जो की इस चौबीसी के 16 वें शांतिनाथजी, 17वें कुंथुनाथजी, 18वें अरनाथजी तीर्थकर बने|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि शास्त्र में बताया गया है कि “संती कुथुं अरिटठनेमि जिणंद पासोय समंरताणं णिचचं स्वव रोगों पणासेई” -यह एक ऐसा मंत्र है, जो सब रोगों का निवारण करने वाला है|”
आचार्य श्री ने कहा कि “चईता भारहंवासं, चक्कवठी महिडढिओ संती-संति करें लोए, पतो गई मणुतरं “-यह शांतिनाथ भगवान की स्तुति है, जिसमें कहा गया है की वे पूरे लोक में शांति स्थापित करने वाले हैं| इस अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ वासुदेव, नौ प्रतिवासुदेव और नौ बलदेव- इस प्रकार कुल तिरेसठ श्लाका पुरुष, जो की लोक में उत्तम व्यक्ति होते हैं, हुए| वासुदेव मरकर नर्क में ही पैदा होते हैं! तीर्थंकर अध्यात्म जगत के सर्वोच्च व्यक्ति और चक्रवर्ती भौतिक जगत के सर्वोच्च अधिपति होते हैं|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि प्रश्न हो सकता है कि इतने बड़े चक्रवर्ती के पद पर बैठ व्यक्ति भी सातवीं नरक में जाकर पैदा हो सकते हैं?
आचार्य श्री ने कहा कि राजनेता अगर धर्म के मार्ग पर चलें तो संभव है, उन्हें नरक में नहीं जाना पड़ सकता हैं, नरक से बच सकते हैं| जहां राजनीतिक व्यक्ति के जीवन में में पापाचार चलता है, निष्ठुरता, निर्दयता, हिंसा, परिग्रह और काम भोगों के प्रति आसक्ति – ये चीजें हो जाती हैं| तो राजनीति भी दूषित हो जाती हैं|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि राजनीति भी एक आवश्यक तत्त्व होता है दुनिया में। राजनीति भले किसी प्रणाली से हो। लोकतांत्रिक प्रणाली में भी राजनीति होती हैं,
जहां जनता का राज होता है, जनता के द्वारा, जनता का व्यक्ति नेतृत्व करता है, जनता से चुना हुआ व्यक्ति प्रधानमंत्री बनता है, राष्ट्रपति बनता है| यह लोकतंत्र लोक के द्वारा चलाया जाने वाला तंत्र होता है| जहां राजतंत्र होता है, एक राजा का शासन चलता है, वह भी एक राजनीति हैं| प्रणाली भले लोकतांत्रिक हो या राजतांत्रिक| दोनों का मूल उद्देश्य प्रजा सुखी रहे, प्रजा में कानून व्यवस्था अच्छी रहे| रास्ते भिन्न भिन्न हो सकते हैं, पर मंजिल एक ही होती है|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि लोकतंत्र में चुनाव होता है, मतदान होता है और एक सामान्य आदमी भी प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हो सकता हैं, उच्च पद पर पहुंच सकता हैं| जबकि राजतंत्र प्रणाली मे राजा का शासन चलता है, वंशवाद चलता है और कभी-कभी इसमें भी संभवतः एक सामान्य आदमी को भी राजा बनने का मौका मिल सकता है।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि राजतांत्रिक या लोकतांत्रिक दोनों प्रणालियों में किसी को मुखिया बनाना पड़ता है| जहां किसी देश, प्रान्त, संगठन में मुखिया नहीं होता, वहां व्यवस्था बिगड़ सकती हैं, उसकी गति खराब हो सकती हैं| किसी को रोकने, तोकने, आगे बढ़ाने के लिए कोई भी समाज, संगठन, प्रांत, देश के संचालन के लिए, किसी भी प्रणाली से हो, पर मुखिया होना आवश्यक होता हैं| कुछ अपवाद को छोड़ दे तो चाहे देवता हो या मनुष्य मुखिया का होना जरूरी होता है|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि चाहे धार्मिक संगठन है या राजनैतिक, ये जो मुखिया होता है, उसकी कार्यप्रणाली बहुत महत्वपूर्ण है, एक मुखिया प्रजा को दुख देता है, कुछ चाटुकारों के वश में होकर कईयों के साथ अन्याय कर लेता हैं, आसक्तिमान, लूटने की श्रेष्टा करता हैं, निष्ठुर होता है, ऐसे भले चक्रवर्ती हो, भले राजा हो, ऐसे लोग मर करके नरक में जा सकते हैं| जहां हिंसा और परिग्रह का माहात्मय है, प्राधान्य हैं, तो मानना चाहिए आगे गति खराब हो सकती हैं|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि रामायण में अयोध्या की राज परम्परा का वर्णन आता है, यानि वे एक कालखण्ड तक राजत्व का पालन करते, राजा के रूप में काम करते और बाद में वे राज्य को छोड़ करके वे साधु बन जाते| *यह एक अच्छी व्यवस्था हैं कि इतने वर्षों तक मैने राज्य संभाला, अब बेटे को राज्य देकर मैं अपनी आत्म साधना करू, ताकि इतने वर्षों तक शासन, प्रशासन करते हुए जो पाप लगे हो, उनका भी शोधन हो सके, धर्म का संचय हो सके|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि यह राजनीति की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण शिक्षा ठाणं के इस पाठ से ली जा सकती हैं कि दो चक्रवर्ती सुभूम और ब्रह्मदत्त मर कर सातवीं नरकी में गये, इसका मतलब हैं कि राजनीति में धर्म को स्थान नहीं दिया| अगर वे धर्म को स्थान देते राजनीति में तो आशा करे, उनको नरक में नहीं जाना पड़ता| तो राजनीति के साथ कैसे धर्मनीति रहे, कैसे न्यायनीति रहे? इसका संयोग हो जाता है तो राजनीति शुद्ध रह सकती हैं|
श्रीमती रागिनी खटेड़ ने 27 दिन, श्वेता दुधोड़िया ने 8 दिन एवं अन्य तपस्वीयों ने आचार्य प्रवर के श्रीमुख से तपस्या का प्रत्याख्यान किया|
साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा, साध्वी प्रमीलाश्री ने अपने जीवन में अंहिसा, सापेक्षवाद से परिपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा दी| जैन महसंघ के अध्यक्ष श्री सज्जनराज ने सामूहिक क्षमायाचना, महावीर जयन्ती इत्यादि संघ द्वारा किये जाने वाले कार्य निवेदित करते हुए सामूहिक क्षमापना कार्यक्रम में सम्मिलित होने का निवेदन किया| सभा मंत्री श्री विमल चिप्पड़, तेयुप मंत्री श्री मुकेश नवलखा ने आगामी पर्युषण में होने वाले जाप इत्यादि धर्माराधना की सूचना दी|
✍ प्रचार प्रसार विभाग
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई
rajendra hirawat
tarun sagargi ache vakta avm kadve swabdh me gayan daine wale saint ke naam se pahchan banayee but in my view his speech was very loudly using heavy duty speakers . sounds was intolerable to ear due to lot of in air givanu used to get killed .as a jain saint ……….actually what he wants to give messages he could given in lower voice. rajendra hirawat