रायपुरम जैन भवन में विराजित पुज्य जयतिलक जी म सा ने प्रवचन में बताया कि राग द्वेष के विजेता, भव्य जीवों को संसार सागर से तिरने के लिए भगवान महावीर ने जिनमार्ग को प्रारूपण किया! जो जीव एक बार जिनवाणी श्रवण कर लेता है उसके भव भव के कर्म क्षय होते है! आत्मा स्वभाव में रमण करने लगती है! बिना इच्छा के सुनने वालों के भी आत्मा का कल्याणा जिनवाणी करती है नैसर्गिक स्वभाव से भी आत्मा के कर्म निजरा होते है जैसे नदी का पत्थर लुढकते लुढ़कते चिकना होता है वैसे ही आत्मा भव सागर में थपेड़े खाते खाते हल्की होती है। दुसरा अधिगम:- एक पत्थर ऐसा होता है जो कुशल कलाकार के हाथों में तराशने से मूर्ति बन जाती है हीरा बन जाता है वैसे ही गुरू कारीगर के हाथ में यह आत्मा सुबोध को प्राप्त करती है! यह जिनवाणी ऐसी उतम है जिसको मन में श्रद्धा जाग जाये तो वह आत्मा को कल्याण कर देती है। ममत्व मुर्च्छा ही परिग्रह है। जिस वस्तु पर जिसकी आसक्ति है वही परिग्रह है यदि आसक्ति नहीं है तो धन संपत्ति भी परिग्रह नहीं। जहाँ परिग्रह के प्रति आसक्ति लगाव रहता है तो जीव येन केण प्रकेरण वह उसको अर्जित करता है। हमें अपने शरीर की साता के प्रति इतनी आसक्ति रहती है कि गर्मी में सामायिक करना उसे भारी पड़ता है और विचार करता है कि कल से मै ऐसी गर्मी में सामायिक नहीं करूंगा। और यदि वही दुकान पर बैठता है, पावर चला जाए तो भी कष्ट सहन करता है। गर्मी दोनो जगह पर लगी किंतु व्यापार के प्रति इतनी आसक्ति कि वह कष्ट सहन कर लेता है।
संसार में रहते वस्तु का संग्रह करना पड़ता है किंतु आसक्ती मत रखो! सब कुछ यहीं रहने वाला। शरीर भी यहीं छुट जायेगा प्रसंग पांचवे व्रत का चल रहा था। अब धान्य के बारे में प्रसंग है। आपके घर में जितने धान्य की आवश्यकता है उतना संग्रह करो! आज अकाल की स्थिति नहीं है। सरकार सभी व्यवस्था कर देती है। आपके घर मैं जितनी आवश्यकता हो उत्तना परिमाण करे! अधिक हो तो उसकी सार सम्भाल करनी पड़ती है। समय व्यर्थ होता है! ज्यादा से ज्यादा तीन महिने तक का संग्रह करो। धान्य का विवेक से मर्यादित करो ! अति संग्रह मत करो जिससे कोई भूखा न रहे। धान्य की मर्यादा कर लो ! यदि घर में कोई कार्यक्रम हो लाना पड़ा तो आगर यदि बच गया तो घर में वापरो किन्तु उसके बाद ही वस्तु खरीदें । धान्य सारे चीजों की मर्यादा कर लो। जिसको आपको सार सम्भाल में समय व्यर्थ न जाए, उस समय को आप आत्म कल्याण में लगा सकते है। जीवों की विराधना भी नहीं होगी! कर्म बंध से भी बचते रहोगे! संचालन मंत्री नरेन्द्र मरलेचा ने किया। यह जानकारी नमिता संचेती ने दी