*योग को कषाय से बचाने की दी प्रबल प्रेरणा*
*उपासक सेमिनार में 150 उपासकों की सहभागिता*
जीव दो हेतूओं से पाप कर्म का बंधन करता है – वे हैं राग और द्वेष| राग और द्वेष कर्म के बीज है, पाप कर्म बन्धन के वे जिम्मेवार है| आठ कर्मों मे एक है मोहनीय कर्म, वह पाप कर्म के बन्धन का जिम्मेदार है, वह कर्मों का राजा है, कर्मों का जनक हैं, और यह साधना में भी बाधक तत्व है|
उपरोक्त विचार जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सुत्र के दूसरे अध्याय का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण जी श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहे|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि साधु सर्व योग का त्याग करते हैं, पर मोहनीय कर्म बीच – बीच में प्रमाद ला देता है, कभी छोटा प्रमाद, कभी बड़ा प्रमाद|
एक शब्द में पाप का जिम्मेदार मोह है, कषाय है और दो शब्दों में राग और द्वेष| चार शब्दों में बांटे तो क्रोध, मान, माया, लोभ|
राग के दो कषाय है माया व लोभ एवं द्वेष के दो कषाय है क्रोध व मान| साधु के लिए ज्ञातव्य है कि भीतर कषाय है तो उससे कर्म का बंधन होगा|
कषाय के साथ कषाय पड़ा है कोई खास बात नही पर वह योग के साथ मिल जाए तो बड़ी बात हो जायेगी, योग अशुभ हो जायेगा|
*मोह का योग के साथ संयोग तो पाप का बन्धन, संयोग नहीं तो वृति शुभ|
योग सावध तभी होता है जब कषाय का मिश्रण होता है, कषाय का मिश्रण नहीं तो सावध योग नहीं|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि साधु को गुस्सा है तो काय योग अशुभ हो जाता है, वाणी से अपशब्द बोल दिया तो वचन योग सावध हो जायेगा, अगर मन में गुस्सा आ गया तो मनो योग सावध हो जायेगा|
*योग को कषाय से बचाने का प्रयास करना चाहिए|
व्यवहार के प्रतिकूल बोलना बन्द करे मौन भाव से बोलना ठीक है, पर आक्रोश भाव से न हो| साधु साध्वी में सौहार्द भाव हो, एक दूसरे के सहयोगी बन कर रहे, आपस में कच – बच न हो, अगर होगा तो शांति में कमी आ सकती हैं| सब जगह सौहार्द भाव हो, उदारता हो|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि संघ में हर कार्य की पांती हो, गृहस्थों में भी कच – बच है, सौहार्द नहीं है तो शांति नहीं रहेगी| मौके पर एक दूसरे को कहना भी चाहिए, गलती पर संकेत भी हो| जो अग्रणी है वे सहवर्ती साधु साध्वी का ध्यान रखे|
*आचार्य श्री ने उपासक सेमिनार के उद्घाटन एवं प्रशिक्षण शिविर के समापन पर पावन प्रेरणा देते हुए कहा कि उपासक श्रेणी प्रगति कर रही हैं और अधिक प्रगति करे|चौवदस पर हाजरी का वाचन किया गया|
साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभाजी ने साधकों को शुभ भावों में रहते हुए साधना में उत्तरोत्तर गति प्रगति करने का आह्वान किया|
उपासक श्रेणी के अध्यात्म पर्यवेक्षक मुनि श्री योगेश कुमार जी ने शिविर की गतिविधियां अवगत कराते हुए कहा कि परमपूज्य आचार्य प्रवर की असीम कृपा से उपासक श्रेणी अच्छा विकास कर रही हैं, हर वर्ष सौ से ज्यादा उपासक श्रेणी से जुड़ रहे हैं लगभग 200 से अधिक क्षेत्रों से उपासक श्रेणी की मांग आ रही हैं|
उपासक श्रेणी के सह संयोजक श्री सूर्यप्रकाश श्यामसुखा ने पूज्य प्रवर के प्राप्त सान्निध्य के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए उपासक श्रेणी की प्रगति के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि
*105 नये शिविरार्थीयों एवं संम्बोधि पर आधारित सेमिनार में लगभग 150 प्रवक्ता एवं सहयोगी उपासक – उपासिकाओं की सहभागीता रही| सहयोगी से प्रवक्ता उपासक श्रेणी आरोहण के लिए 19 उपासिकाओं ने परीक्षा में भाग लिया|
शिविरार्थी बहन जिन्नी जैन, बैंकांक ने अपने शिविर काल में मिले अनुभवों को बताते हुए कहा कि मैने भिक्षु विचार दर्शन से तेरापंथ के सिद्धांतों को समझा और तेरापंथ की श्रद्धां स्वीकार की|
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तपस्वीयों ने आचार्य प्रवर के श्री मुख से तपस्या प्रत्याख्यान लिया|
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार जी ने किया|
*उपासक प्रशिक्षण शिविर का समापन*
जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा के तत्वावधान में परमपूज्य आचार्य प्रवर के मंगल सान्निध्य हर वर्ष की भांति इस वर्ष नौ दिवसीय उपासक प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया| शिविर काल में विभिन्न विषयों पर मुनि वृद्ध एवं साध्वी वृद्ध और प्रशिक्षकों ने प्रशिक्षण दिया| आज अंतिम दिवस सभी की लिखित परीक्षा ली गई|