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रत्नवंशीय पंचम आचार्यश्री विनयचन्द्रजी म.सा की पुण्यतिथि मनाई गई

रत्नवंशीय पंचम आचार्यश्री विनयचन्द्रजी म.सा की पुण्यतिथि मनाई गई

श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ-तमिलनाडु के तत्वावधान में रत्नवंशीय पंचम आचार्यश्री विनयचन्द्रजी म.सा की पुण्यतिथि मनाई गई |

 आज मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी दिनांक 27 नवम्बर 2024 बुधवार को श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ- तमिलनाडु के तत्वावधान में रत्नवंश के पंचम आचार्यश्री इस युग के श्रुतकेवली, साम्प्रदायिक सहिष्णुता के संदेशवाहक, वात्सल्यमूर्ति बाल ब्रह्मचारी पूज्यश्री विनयचन्द्रजी म.सा की पुण्यतिथि जप-तप-त्याग पूर्वक स्वाध्याय भवन, साहूकारपेट,चेन्नई में सामायिक दिवस रुप में मनाई गई | वरिष्ठ स्वाध्यायी बन्धुवर श्री लीलमचन्दजी बागमार व उच्छबराजजी गांग ने आचार्यश्री की स्तुति की |

वरिष्ठ स्वाध्यायी आर वीरेन्द्रजी कांकरिया ने महासतीजी लीलाबाईजी म.सा के प्रवचनों पर आधारित तेतलीपुत्र का वांचन व अनुप्रेक्षा करते हुए कहा कि महापुरुषों के गुणों से जीवन मे कुछ गुण धारण करने चाहिए |

श्रावक संघ,तमिलनाडु के कार्याध्यक्ष आर नरेन्द्रजी कांकरिया ने धर्मसभा में आचार्यश्री विनयचंद्रजी म.सा के जन्म स्थल फलोदी,राजस्थान,माताजी श्रीमती रम्भादेवीजी -पिताजी श्री प्रतापमलजी पुंगलिया के परिचय, वैराग्य,दीक्षा व चरित्रमय जीवन पर प्रकाश करते हुए कहा कि उन्हें इस युग के श्रुत केवली के नाम से जाना जाता हैं | आचार्यश्री के गुणगाण करते हुए कहा कि विनयचंद्र ने बाल्यकाल में माता-पिता का साया सिर पर से उठ जाने के बाद बड़े होने के नाते चार भाईयों व एक बहन के परिवार की जिम्मेदारी को कर्तव्य पूर्वक निभाया | पाली में आचार्यश्री कजोडीमलजी म.सा के दर्शन के पश्चात वैराग्य भाव-गुरु सन्निधि प्राप्त होने के पश्चात अपने अनुज भाई श्री कस्तूरचंदजी के संग अजमेर में पन्द्रह वय की आयु में जैन भागवती दीक्षा सम्पन्न हुई | उनके दीक्षित होने के पश्चात साधनामय जीवन,आगमज्ञाता, वात्सल्यता, उनकी शिष्य परम्परा की विस्तृत जानकारी देते हुए पंजाबी परम्परा के अमरचंद्रजी म.सा के श्री मयारामजी म.सा, स्वामी श्री कनीरामजी म.सा, धर्मदास परम्परा के पण्डित रत्न श्री माधवमुनि म.सा,आचार्यश्री हुक्मीचंद्रजी म.सा के तत्कालीन आचार्य श्रीलालजी म.सा आदि परम्पराओं के संग मधुर व्यवहार संबंधों व संयुक्त प्रवचनों व 36 चातुर्मासों की विशेष जानकारी देते हुए गुणगान किये | जब वे 40 वर्ष के थे,उन्हें अजमेर में रत्नवंश के पंचम आचार्य के रुप में घोषित किया गया | उनका 60 वय का संयममय जीवन रहा, 75 की वय में जयपुर में समाधिपूर्वक देवलोकगमन हुआ |

सुश्रावक प्रेमजी बागमार व योगेशजी श्रीश्रीमाल ने तीन मनोरथ व चिंतन सूत्र करवाया | स्वाध्यायी श्री गौतमचन्दजी मुणोत ने जैन संकल्प कराया | चेन्नई-तमिलनाडु के वरिष्ठ स्वाध्यायी बन्धुवर श्री चम्पालालजी बोथरा ने मंगल पाठ सुनाया |

 व्रत-नियम-प्रत्याख्यान के पश्चात श्रमण भगवान महावीरस्वामी, आचार्य भगवन्तों,उपाध्याय भगवन्त चरित्र आत्माओं की जयजयकार के संग पुण्यतिथि कार्यक्रम सामायिक साधना पूर्वक सम्पन्न हुआ |

प्रेषक : श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ,तमिलनाडु 24/25-बेसिन वाटर वर्क्स स्ट्रीट,साहूकारपेट चेन्नई तमिलनाडु

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