श्री सुमतिवल्लभ जैन संघ नोर्थटाउन में आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने रक्षावन्धन पर्व का आध्यात्मिक महत्व समझाते हुए कहा कि भारत वर्ष में प्राचीन काल से ही पर्वों का विशेष महत्व रहा है। आधुनिक प्रगति में जहां हमारा देश नई बुलंदियों को छू रहा है वही अपनी प्राचीन मान्यताओं को भी बड़ी सहजता से संजोए हुए हैं।
श्रावणी पर्व पर मंत्रों से अभिमंत्रित किया जाने वाला कलावा मात्र तीन धागों का समूह ही नहीं है अपितु इस में आत्मरक्षा, धर्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा के तीनों सूत्र संकल्पबद्ध होते हैं। प्राचीन मान्यताओं से इस पर्व को मानने वाले श्रद्धालू इस दिन भारत की महान परंपराओं का स्मरण करते हुए संकल्प करते हैं जिसे हेमाद्रि संकल्प अर्थात् हिमालय जैसा महान संकल्प का नाम दिया हुआ है। जिसमें सर्वप्रथम मनुष्य को नाना प्रकार के पाप, दुराचरण और समाज विरुद्ध कर्मों से दूर रहने तथा उनके प्रायश्चित् की बात कही है।
इस संकल्प में प्राचीन भारत के वन प्रदेशों का स्मरण किया जाता है। इसके बाद पर्वत मालाओं को याद किया जाता है इसके बाद वर्तमान में श्रावणी पर्व पर यह संकल्प लें कि भारत की सार्वभौमिक, विश्व बंधुत्व की भावना हमें एक सूत्र में बंधने की प्रेरणा प्रदान करती रहे तथा राष्ट्र में कोई भी विघटनकारी ताकत अपना सिर न उठा सके। कुछ सदियों से रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहिन के स्नेह के पर्व के रूप में प्रसिद्ध हो गया है। इसे एक और नई उपलब्धि कहा जा सकता है क्योंकि भाई अपनी बहनों से राखी बंधवा कर उसे यह विश्वास दिलाते हैं कि इस पवित्र बंधन के माध्यम से वह तुम्हारी सदैव देखभाल करता रहेगा।
अतः रक्षाबंधन के इस पर्व के साथ भाई-बहन के प्रेम का सूत्र बंध जाने पर सुरक्षा कवच का भाव भी प्रकट कर सकता है। कभी-कभी आज का युवा पाश्चात्य आंधी से भ्रमित सा हो जाता है। समाज में नए-नए अपराध पनप रहे हैं। ऐसी विषम परिस्थितियों में यदि बहन की समस्त बाधाओं से रक्षा का संकल्प लिया जाए तो समाज अपराध से मुक्त हो सकता है। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि अपनी बहन की रक्षा के साथ हम सभी की बहनों की रक्षा का भी संकल्प लें। इस प्रकार यह पर्व भारत की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक परंपरा का संकल्प दिवस बनकर एक नए युग में प्रवेश करा सकता है।