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योग मन को शुद्ध, आत्मा को पवित्र बनाता है: मुनिश्री हिमांशुकुमार

योग मन को शुद्ध, आत्मा को पवित्र बनाता है: मुनिश्री हिमांशुकुमार

Sagevaani.com /चेन्नई: जो हमारे स्वास्थ्य को संतुलित व स्वस्थ बनाता है, मन को शुद्ध बनाता है, आत्मा को पवित्र बनाता है- उसे योग कहते है। भारतीय संस्कृति में योग का मन, वचन और शरीर से गहरा संबंध माना गया है। योग के माध्यम से हमें शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक आरोग्य की प्राप्ति होती है। स्वस्थ शरीर, स्वस्थ मन एवं पवित्र भावधारा की प्राप्ति यौगिक क्रियायों से संभव है। उपरोक्त विचार दसवें अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर आचार्य श्री महाश्रमणजी के विद्वान सुशिष्य मुनिश्री हिमांशुकुमारजी ने अणुविभा के तत्वावधान में अणुव्रत समिति, चेन्नई एवं श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ ट्रस्ट, ट्रिप्लीकेन की आयोजना में तेरापंथ भवन में ‘योग अपनाएं- आरोग्य पाएं’ कार्यक्रम में विस्तार से बताएं।

 ◆ _शरीर को साधना- यह श्वास एवं मन को साधने में बनता सहायक_

 मुनिश्री ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि शरीर साधने की प्रक्रिया श्वास एवं मन को साधने में सहायक बनती है। यौगिक क्रियाएं आरोग्य प्रदान करती है। जैसे मनोयोग से मन की चंचलता कम होती है एवं भावयोग से भावों की शुद्धि होती है। योग से हम आत्मतत्व तक पहुंच सकते है। अपने व्यक्तित्व एवं जीवन को परिष्कृत कर सकते है।

◆ _स्वास्थ्य के पाँच चिकित्सक- हवा, धूप, पानी, पृथ्वी और भोजन_

  मुनिश्री हेमंतकुमारजी ने कहा कि योग ऐसी साधना है जिससे व्यक्ति स्वयं से जुड़ जाता है। स्थूल जगत से सूक्ष्म जगत की ओर मुड़ना, प्रस्थान करना,योग से संभव है। योग की एक विधा है आसन। भारतवर्ष में अनेक योग महर्षियों ने योग की महत्ता बत‌ल‌ाई है। योग के जब विविध प्रयोग करते हैं- चाहे आसन हो, ध्यान हो, प्राणायाम हो तब शरीर की क्रियाएं जागरुकता पूर्वक संचालित होती है।उससे आंतरिक विकास होता है। यौगिक क्रियाएं स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होती है। स्वास्थ्य का अर्थ है पूर्णता का अहसास। बाह्य नकारात्मकता को क्षीण करने से स्वास्थ्य की प्राप्ति आसान होती है। स्वास्थ्य के पाँच चिकित्सक- हवा, धूप, पानी, पृथ्वी और भोजन। पानी बैठकर एवं घुंट घुंट पीना लाभप्रद हो सकता है। प्रदुषित हवा से यथासंभव बचाव एवं धूप का ताप स्वास्थ्य के लिए उपयोगी होता है। पृथ्वी से सीधे संपर्क के लिए संभव हो तो बिना जूते चप्पल के गमन करना और मिट्टी के बर्तनों के प्रयोग पर भी ध्यान दिया जा सकता है। सात्विक भोजन भी सानुकूल स्वास्थ्य के लिए वांछनीय माना जा सकता है।

समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती

    मंत्री- अणुव्रत समिति, चेन्नई

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