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योग की महिमा अद्भुत है: उपाध्यायश्री युगप्रभविजयजी

योग की महिमा अद्भुत है: उपाध्यायश्री युगप्रभविजयजी

किलपॉक स्थित एससी शाह भवन में विराजित उपाध्यायश्री युगप्रभविजयजी ने योगशास्त्र का वर्णन करते हुए कहा कि योग की महिमा अद्भुत है। योग के प्रभाव से विशाल साम्राज्य वाले भरत महाराजा को केवल ज्ञान व मोक्ष की प्राप्ति हुई। लोगों की सोच है, खाते पीते भी मोक्ष मिल जाता है, ऐसा सोचने वाले अज्ञानी है। इतनी सुगमता से मोक्ष प्राप्त हो जाए तो तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि को कठिन साधना करने की क्या आवश्यकता थी।

उन्होंने कहा कि मात्र योग को जीवन में लेकर आ जाओ, मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। योग से व्यक्ति की पात्रता का विकास होता है। हमें जिनवाणी का श्रवण गुरु के मुख से करना चाहिए क्योंकि उसका आचरण उन्होंने जीवन में किया है। योगशास्त्र पाने के पहले इच्छायोग की प्रक्रिया करनी पड़ती है। जिस तरह कपड़े धोते समय घिसने की प्रक्रिया करनी पड़ती है, उसी तरह योग पाने के लिए साधना करनी पड़ती है। हमारे अंदर इच्छा योग है, लेकिन शास्त्रयोग नहीं। जिनशासन में साधना की मात्रा की नहीं,  गुणवत्ता की कीमत है। हमारे जीवन में मोहराजा द्वारा मैं और मेरा का मंत्र दिया हुआ है। मैं यानी अहम के कारण शत्रुता खड़ी हो जाती है। मेरा यानी मम के कारण ममत्व खड़ा होता है।

उन्होंने कहा कि हमें जीवन को मात्र जीना नहीं है, जीतना है। हमेशा लेटगो के सिद्धांत को अपनाना सीखो। शास्त्रों में कहा गया है फल की प्राप्ति जब से आपने बीज बोने का कार्य किया है, तब से शुरू हो जाती है। संसार में हर कार्य अधूरा ही होता है, पूर्ण कभी नहीं। परमात्मा ने चार योगसूत्र हमें दिया है एकत्व, एकांत यानी राग द्वेष से रहित समता में रहना, ध्यान और मौन। सामर्थ्य योग की प्राप्ति इच्छायोग के बाद शास्त्रयोग को क्रम से करने से आती है। भरत महाराजा ने पूर्व के बारह भव में चारित्र अंगीकार किया था। निष्काम भाव से चरित्र पालन करने से वे चक्रवर्ती सम्राट बने और बाद में केवलज्ञान और मोक्ष प्राप्त किया। कुछ निकाचित पुण्य कर्म से सुख को भोगने से ही लक्ष्य मिलता है।

यदि आपको भरत महाराजा जैसा मोक्ष चाहिए तो अच्छा सीखो और अच्छा सुनो। परमात्मा को उलाहना दो कि चक्रवर्ती भी मोह राजा के जीते हुए हैं। फिर उन्हें मोक्ष कैसे प्राप्त हुआ, मुझे क्यों नहीं। एक तमाचे से ज्यादा शब्दों में ताकत होती है। भरत महाराजा की तरह अपने हित की बात करने वालों से कभी मुंह नहीं बिगाड़ना, चाहे वे अकेले में कहे या सबके सामने। ऐसा नियम जीवन भर के लिए ले लेना चाहिए।

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