चेन्नई. ट्रिप्लकेन स्थित महावीर भवन में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए जयधुरंधर मुनि ने कहा कि दान देने से देनेवाले का पुण्य तो बढ़ता ही है, पाने वाले की आवश्यकता की पूर्ति भी हो जाती है।
धन की तीन गतियाँ बताई गई है दान,भोग और नाश। उत्कृष्ट भावों से योग्य पात्र को दिया हुआ दान कालांतर में शुभ परिणाम देता है। दानों में श्रेष्ठ अभयदान है, जिसमें सभी प्रकार के प्राणियों को भय से मुक्त कर दिया जाता है।
धर्म ध्यान की श्रेणी में आने वाले सुपात्र दान का महत्व समझाते हुए मुनि ने कहा कि दान देते समय यदि द्रव्य , भाव और पात्र की शुद्धि है तो सहज में सम्यक्त्व की प्राप्ति हो सकती है। प्राणी मात्र के प्रति अनुकंपा दर्शाते हुए श्रावक गायों को घास खिलाता है, पशुओं को चारा डालता है, कबूतरों को दाना ड़ालता है भूखों को भोजन खिलाता है।
एक आदर्श श्रावक को भी प्रतिदिन कुछ ना कुछ दान करने की भावना रखनी चाहिए, जिससे उसके कर्म हल्के हो सके। धर्म के चार स्तम्भ एवं मोक्ष के चार द्वार दान, शील, तप, भाव में भी दान का स्थान प्रथम है। मुनिवृंद यहाँ से विहार कर कोसापेट जैन स्थानक पहुंचेंगे जहाँ 3, 4 और 5 जुलाई तक प्रवास करते हुए प्रतिदिन 9.30 बजे प्रवचन देंगे।