तिरुवल्लूर. मुनि संयमरत्न विजय व मुनि भुवनरत्न विजय ने जिले के पालवेड ग्राम स्थित अयप्पा मंदिर में ग्रामवासियों की योगासन-प्राणायम व ध्यान की पद्धतियां सिखाई। मुनि ने कहा व्यक्ति के आंतरिक स्वास्थ्य, शांति और आनंद के लिए योगासन, प्राणायाम और ध्यान अमृत के समान है।
जो योग का अभ्यास करता है, उसके लिए प्राणायाम सहज हो जाता है। जिसे प्राणायाम का अभ्यास हो जाता है, उसके लिए ध्यान में प्रवेश करना, ध्यान की साधना सरल हो जाती है। ध्यान अपने आप से धैर्य और शांतिपूर्वक मिलने का नाम है। स्वयं के प्रति धीरज धरना, स्वयं को शांतिमय बनाना,स्वयं के प्रति बोधमूलक होना ही ध्यानयोग है। ध्यान के लिए आप स्वयं का भी ध्यान कर सकते हैं और अपने इष्ट प्रभु का भी।
महावीर और बुद्ध दोनों ही ध्यान के आदर्श हैं। महावीर ने ध्यान से ही परम ज्ञान और आत्म-प्रकाश को प्राप्त किया था और बुद्ध ने भी ध्यान से ही स्वयं की आत्मा को जाग्रत किया था। मुनि की साधना से प्रभावित होकर यहाँ के योग गुरु हरिदास के परिवार सहित कई लोगों ने शाकाहार स्वीकार किया।