Share This Post

ज्ञान वाणी

यात्रात्रिक यानी परमात्मा की भक्ति: मुनि संयमरत्न विजय

यात्रात्रिक यानी परमात्मा की भक्ति: मुनि संयमरत्न विजय
साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने पर्यूषण के दूसरे दिन वार्षिक 11 कर्तव्य समझाते हुए कहा जो कर्तव्य पथ पर चलता हुआ ठोकरें नहीं गिनता, वह एक दिन ठाकुर बन जाता है।  स्वरूप अ_ाई महोत्सव करना। नगर के समस्त जन धर्म से प्रभावित हो ऐसी रथयात्रा निकालना, आत्मशुद्धि के साथ सिद्धिकरण हो, स्नात्र महोत्सव यानी विधि-अर्थ-भावपूर्वक प्रभु की पूजा-भक्ति करना, देवद्रव्य वृद्धि अर्थात नीतिपूर्वक कमाई हुई लक्ष्मी का सदुपयोग प्रभु-भक्ति में करना।
अष्ट कर्म के आवरण का अनावरण करने के लिए इस पर्व का आगमन होता है। ईहलोक व परलोक कल्याणकारक, कर्म के मर्म को समझाकर निर्मल आत्मधर्म की ओर ले जाने वाला यह पवित्र पर्व है। संघपूजा यानी संघ की पूजा तीर्थंकरों की पूजा के समान है। साधर्मिक भक्ति अर्थात श्री संभवनाथ परमात्मा ने पूर्व के तृतीय भव में साधर्मिक भक्ति करके तीर्थंकर पद को प्राप्त कर लिया था।
सभी परिवार संघ को सशक्त बनाने की जिम्मेदारी ले लें तो संघ स्वत: ही शक्तिशाली बन जाएगा।
 महापूजा अर्थात जिनालय के संपूर्ण भाग को सुंदर रूप में सजाकर परमात्मा की पूजा पढ़ाना, रात्रि जागरण कल्पसूत्र, परमात्मा का पारणा आदि अपने गृहांगण में लाकर, अन्न-जल का सेवन किये बिना रात्रि जागरण करना। श्रुज्ञान भक्ति’-कागज में नहीं खाना,कागज पर नहीं बैठना,कागज को नहीं जलाना, झूंठे मुंह नहीं बोलना, श्रुतज्ञान के साधन को नहीं फेंकना, सूत्रों का शुद्ध उच्चारण करना इत्यादि।
उद्यापन अर्थात मोक्ष मार्ग में सहायक ऐसे दर्शन, ज्ञान, चारित्र के उपकरण सजाकर आवश्यकतानुसार यथायोग्य स्थान पर भेंट करना। तीर्थ प्रभावना यानी अपनी वेशभूषा, भाषा,आचार-विचार-व्यवहार व सदाचार से अन्य को प्रभावित करना। आलोचना शुद्धि यानी वर्षभर में हुई गलतियों को सुधारने के लिए योग्य गुरु से प्रायश्चित लेना।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar