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यह पुण्य का प्रभाव है कि तरुण सागर जी कडवा बोलते थे फिर भी लोग उन्हें सुनने को बेताव रहते थे

यह पुण्य का प्रभाव है कि तरुण सागर जी कडवा बोलते थे फिर भी लोग उन्हें सुनने को बेताव रहते थे

साध्वी नूतन प्रभा श्रीजी ने बताया नौ पुण्यों मे से कोई भी एक करोगे तो पाप करना मुश्किल हो जाएगा

Sagevaani.com @शिवपुरी। त्रियंच, नरक और देव गति में चाहते हुए भी पुण्य नहीं किया जा सकता लेकिन मानव गति है जिसमें प्रत्येक आत्मा को पुण्य करने की स्वतंत्रता मिलती है। जीवन मेें जो भी सुख मिलता है वह पुण्यों के कारण है।

यह पुण्य की प्रबलता का प्रभाव है कि आचार्य तरुण सागर जी कडवा बोलते थे लेकिन इसके बाद भी उन्हें सुनने को बेताव रहते थे। पुण्य की महिमा पर उक्त उदगार प्रसिद्ध जैन साध्बी नूतन प्रभा श्रीजी ने स्थानीय कमला भवन में आयोजित एक विशाल धर्म सभा में व्यक्त किये। धर्म सभा में साध्बी पूनम श्रीजी ने जीवन के लक्ष्य मानवता अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जिस इंसान में मानवता नहीं है उसका जीवन पशु के समान है। उन्होंने बताया कि भगवान राम की तरह जीवन मर्यादित, भगवान कृष्ण की तरह शांतिप्रिय, भगवान बुद्ध की तरह करूणा और भगवान महावीर की तरह क्षमा से ओतप्रोत, कर्ण की तरह दानी, भरत की तरह अनासक्त होना चाहिए।

 प्रारंभ में साध्बी वंदना श्रीजी ने पुण्य की ज्योति जगाते चलो, पुण्य से पुण्य बढाते चलो, भजन का गायन किया। इसके बाद साध्बी नूतन प्रभा श्रीजी ने बताया कि हमारा सारा जीवन पाप और पुण्य का खेल है। उन्होंने कहा कि जैनदर्शन में नौ पुण्य होते है जबकि पाप अठारह होते है। नौ पुण्यों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि सबसे पहला पुण्य है, अन्न दान, दूसरा पान पुण्य, तीसरा शयन पुण्य चौथा स्थान पुण्य और पांचवा वस्त्र पुण्य होता है। लेकिन चार पुण्य ऐसे है जो सिर्फ शुद्ध भावना मन में रखकर किए जा सकते है। ये पुण्य है मन पुण्य, बचन पुण्य, काया पुण्य, और नमस्कार।

उन्होंने बताया कि यदि आपको अपना जीवन सुखमय बनाना है तो जीवन में प्रतिदिन कोई न कोई पुण्य अवश्य करना चाहिए। यदि कोई आपका दुश्मन है तो उसके प्रति शुद्ध भावना भाकर भी आप पुण्य कर सकते है। उन्होंने कहा कि यह पुण्य का प्रभाव है कि एक व्यक्ति कुछ काम नहीं कर रहा आराम कर रहा है फिर भी उसका जीवन समृद्ध है। हजारो लोग उसे नमस्कार करते है यह पुण्य की पूंजी का प्रभाव है जबकि दूसरा व्यक्ति कठिन परिश्रम कर रहा है लेकिन फिर भी वह दाने-दाने को मोहताज है। इसलिए दिन-प्रतिदिन अपनी पुण्यों की पूंजी को बढाने का प्रयास करते रहो। उन्होंने कहा जिस दिन आपके पास पुण्य की पूंजी नहीं रहेगी उस दिन आपको बचाने वाला कोई नहीं रहेगा। पुण्य करोगे तो पाप करना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने कहा कि पुण्य हमें करना पडते है लेकिन पाप तो खुद व खुद होते है।

अच्छा सोचो और मीठी भाषा का इस्तेमाल करो।

साध्वी नूतन प्रभा श्रीजी ने बताया कि जीवन को पुण्यशील बनाना है तो हमें अच्छा सोचने का हर समय प्रयास करना चाहिए। सदैव यही कामना करें कि संसार का हर प्राणी सुखी रहे उसे किसी प्रकार का कष्ट न रहे। ऐसा सोचने मे हमें कोई धन खर्च नहीं पडता लेकिन इससे हमारा जीवन भी सुखमय होता है। जैसा आप दूसरों के बारे में सोचते है ईश्वर फिर आपको भी वही देता है जो आपने दूसरे के

बारे में सोचा है । उन्होंने कहा कि हमें ऐसी वाणी बोलनी चाहिए और ऐसी मधुर भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए जिससे लोग हमसे बात करने और संर्पक करने के लिए लालायित रहें। उन्होंने कहा कि जिसके पास जाने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है लोग उससे मैत्री स्थापित करने में गौरव महसूस करते हैं।

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