किलपाॅक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्य केशरसूरीजी के समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. ने ज्ञाता धर्मकथा की विवेचना करते हुए कहा कि छोटा सा पाप किया और सरलता का गुण नहीं अपनाया तो वह दोष हमारे लिए भारी होता है। सरलता नाम का गुण मेरुपर्वत जितने बड़े पापों को भी हल्का कर देता है। धर्मकथा दो प्रकार की होती हैं कल्पित दृष्टांत और चरित्र दृष्टांत। उन्होंने कहा श्रद्धा प्राण है, इसे कभी कम मत करो। यदि श्रद्धा को कम कर दिया तो आराधना करना व्यर्थ है।
आराधना निष्फल होने के पांच कारण है अश्रद्धा, अनुताप यानी पश्चाताप, अविधि, अधैर्य और अज्ञान यानी कदाग्रह। इन पांचो दोषों से मुक्त रहने पर ही व्यक्ति धर्म का पूर्ण फल पा सकता है। प्रभु के प्रति अहोभाव उत्तरोत्तर बढ़ना चाहिए। हरेक के गुणों के प्रति अनुराग के भाव होने चाहिए। गुरु महाराज की बात को नहीं मानना अज्ञानता है। गुरुदेव ने कहा किया हुआ पुरुषार्थ का फल अभी नहीं, तो बाद में मिलेगा। कोई भी क्रिया फलित होती ही है, वह कभी निष्फल नहीं जाती। इंद्रियों पर अनियंत्रण रखना अज्ञानता का कारण है। सजा के लिए व्यक्ति को नहीं देखा जाता, भूलों को देखा जाता है।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि पालना, मानना और जानना, ये तीनों का पालन जो करते हैं, वे सर्वविरति है। जो पालते हैं परंतु मानते और जानते नहीं, वे मिथ्यात्वी है। जो जानता है, मानता है, लेकिन पालता नहीं, वे पंडित होते हैं। जो जानता है लेकिन मानने के लिए तैयार नहीं, वे अभवी जीव होते हैं। मानने के लिए आदर करना जरूरी है। जो जानते हैं, पालते हैं लेकिन पूरा मानते नहीं, वे मार्गानुसारी होते हैं। तीनों गुण जिसमें है, वे देशविरति भी हो सकते हैं। ज्ञानी कहते हैं तीनों में सबसे बड़ा गुण मानना है। परमात्मा के शासन में नव निन्हव भी हुए हैं। निन्हव का मतलब है परमात्मा की वाणी को अपनी बुद्धि से तर्क- वितर्क कर अपना मत रखना।
आत्मा के ऊपर बंध, निकाचितकर्म आदि चार कर्मों का आवरण रहा हुआ है। आत्मा और कर्म को दूध और पानी जैसा माना गया है। यदि दूध में नींबू या फिटकरी डालते हैं तो दूध और पानी अलग-अलग हो जाते हैं। उसी तरह तप करके आत्मा को जलाओगे तो कर्म जलेंगे, आत्मा नहीं। उन्होंने कहा जानने व पालने वाला कम होगा तो चलेगा परंतु मानने वाला नहीं होगा, तो नहीं चलेगा। ज्ञानी कहते हैं सम्यक्त्व नहीं है तो नहीं चलेगा। हम कई बार गलत जानकारी लेकर आ जाते हैं। यह गलत जानकारी देने वाले एकांतवादी लोगों से सतर्क रहना जरूरी है। आचार्य प्रवर ने कहा कामराग इतना खराब नहीं होता, दृष्टिराग बहुत खराब होता है।