Share This Post

Featured News / Featured Slider / ज्ञान वाणी

यदि आप अपने जीवन में मिथ्या आचरण करते है तो मिथ्यात्वी है: पुज्य जयतिलक जी म सा

यदि आप अपने जीवन में मिथ्या आचरण करते है तो मिथ्यात्वी है: पुज्य जयतिलक जी म सा

जैन भवन,रायपुरम में चातुर्मासार्थ विराजित पुज्य जयतिलक जी म सा ने प्रवचन में बताया कि अंनत उपकारी भगवान महावीर ने भव्य जीवों को संसार सागर से तिरने के लिए मोक्ष मार्ग प्ररूपित किया ! जैन अचार धर्म का निरूपण किया! यदि आप अपने जीवन में मिथ्या आचरण करते है तो मिथ्यात्वी है। विवेक से युक्त ज्ञान युक्त आचरण जिनधर्म में बताया गया है! जैन आचरण से आपको एलर्जी हो रही है। जैन आचार पर आपको जोर देना चाहिए! अपनी संतति पर ध्यान रखे। विपरीत आचरण बंधी में न आने दे! नाम से नहीं आचरण से जैन बनो! निर्जरा कहाँ होगी, मोक्ष कैसे होगा। जिन आचरण से ही होगा। खाते पीते भी आप मोक्ष प्राप्त कर सकते हो! अन्य मतावलम्बी अपने धर्म के आचरण का पूरा ध्यान रखता है भले ही वह मिथ्या है! आप जिन आचरण सम्यक आचरण को जीवन में डालो। न हाय हाय हो न बाय बाय हो! जय जिनेन्द्र से अभिवादन करें। इस छोटे से शब्द से ही मन वचन काया के कर्म क्षय होते है, जिनधर्म का भान होता है! भारतीय में संस्कार में हाथ जोडना याने नमस्कार करना है! अपना आचरण ऐसा हो कि अन्य धर्मी में अपनी जिन धर्म की छाप पड़नी चाहिए।

जय जिनेन्द्र से विनय गुण प्रकट होता है! अरिहंत भगवान को वन्दन हो जाता है। इसके नीच गोत्र क्षय होता है उच्च गोत्र की प्राप्ति होती है! शुभ भावों में जय जिनेन्द्र बोलने से तिर्थंकर गोत्र की – प्राप्ति हो सकती है। अपने धर्म को सुरक्षित रखोगें तो आप सुरक्षित रहेंगे! “धर्मो रक्षति रक्षक! समयक्त्व द्रढ होता है। क्षायिक समकित की प्राप्ति होती है जो मोक्ष का रिजर्वेशन है। “हाय बाय छोडा” जयजिनेन्द्र” बोलो। अन्य धर्मी भी जब जय जिनेन्द्र बोलता है उसकी भी अकाम निर्जरा होती है। और एक दिन वह भी समस्यत्व को प्राप्त कर सकता है। नमस्कार करने से हृदय का परितकार होता है! कर्म क्षय होते है!..

किसी भी भाषा का विरोध नहीं किंतु अपने जिन संस्कार को सुरक्षित करना है! अपनी पहचान जय जिनेन्द्र से है अपने धर्म को ढर्ढता से पालन करो! भगवान ने यहाँ तक फरमाया है, कि पानी भी पीओ तो विवेक से। पानी से महाआरम्भ होता है ऐसा आचारंग सुत्र में बताया गया है। पानी की विराधना से बचो! पानी पीने से भी कर्म बंध होता है तो पानी कैसे पीए। पानी केवल छान कर ही नहीं ब्लकि उसे अचित बनाकर ग्रहण करें! एक जीव की रक्षा से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। नरक से बच जाता है। जहाँ दया करुणा होती है वहां अनछाना पानी नहीं पीते।
बचपन में ही आदत डाले की प्रासुक जल ही पीना हमारा आचार है। प्रासुक जल से अनेक विराधना से बच सकते है।
पाप कर्म से बचाने वाला ही धर्म है। यदि थोडा सा प्रमाद टाल दो ! जन्म मरण का चक्र मिट जायेगा। वह जीव मोक्ष चला जायेगा। बोतल का पानी पीने से पीने वाला और पिलाने वाला दोनों की दुगर्ति होती है।
आजकल तो गौशाला में भी गायों को प्रासुक जल पिलाया जाता है तो आप क्यों प्रासुक जल नहीं पी सकते। पाप से बचने के लिए, भगवान ने प्रासुक जल का विधान बताया। प्रासुक जल से बिमारी टलती है स्वास्थ्य बना रहता है! कर्म बंध नहीं होता! जैनो को तो पानी की मर्यादा बताई है। प्रमाण से उपयोग करो। व्यर्थ नहीं जायेगा। कर्म बंध नहीं होगा। वापरे हुए पानी का भी विवेक रखो ! जीवों की विराधना से बचो ! जैन स्वयं की भी रक्षा करता है अन्य जीवों की भी रक्षा होती है! द्रव्य के साथ भाव अहिंसा भी हो जाती है। जैन धर्मातुकुल आहार ही ग्रहण करे। अन्य आहार से हमारे आचार, संस्कृति में भी विक्रती आ जाती है।

भोजन से भी जैन की पहचान होती है! प्रवचन में जयमल जैन श्रावक संघ के अनेक पदाधिकारिगण उपस्थित रहे। संचालन मंत्री नरेन्द्र मरलेचा ने किया। यह जानकारी ज्ञानचंद कोठारी ने दी ।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar