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मौत रुलाती है रोने वालों को, मौत जगाती है जागने वालों को : प्रवीण ऋषि

मौत रुलाती है रोने वालों को, मौत जगाती है जागने वालों को : प्रवीण ऋषि

लालगंगा पटवा भवन में गूंज रहे हैं महावीर के अंतिम वचन

आज का लाभार्थी : श्री भीखमचंदजी प्रदीपजी दिलीपजी अभिषेकजी गोलेच्छा परिवार

Sagevaani.com/रायपुर। मौत रुलाती है रोने वालों को, मौत जगाती है जागने वालों को। जो दूसरे की मौत पर रोते हैं, वे कभी जाग नहीं पाते। जो मृत्यु को देखकर जाग जाते हैं, वे मंजिल पर पहुंच जाते हैं। जैसे स्थूलिभद्र अपने पिता की मौत के बाद रोया नहीं, जाग गया और उसने भोग-वासना के जीवन का त्याग कर संयम का मार्ग अपनाया। लालगंगा पटवा भवन में उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के तीसरे दिन गुरुवार को उत्तराध्ययन सूत्र गाथा 4-5 संथारा अथवा सल्लेखना का उपाध्याय प्रवर ने वर्णन किया। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।

उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि जीवन में जो प्रमाद करता है उसके लिए जीवन बोझ बन जाता है। मनुष्य स्वयं की मृत्यु को नजरअंदाज कर धन-वैभव को इकठ्ठा करता है, और इसे सहेज कर रखता है। प्रभु कहते हैं जब आयुष कर्म का जब क्षय हो जाएगा तब स्वयं के पाश में बांध वह व्यक्ति नर्क में जाएगा। प्रभु फरमाते हैं कि वैर भाव से भावित जिसका ह्रदय है, जो दुश्मनों की आशंका में जीता है, जो निरंतर दुश्मनी के षड्यंत्र रचता है, यह वैर उसे नर्क में ले जाता है।

उपाध्याय प्रवर ने एक चोर की कहानी सुनाई, जिसके पास एक अनोखी कला थी। वह जिस घर में चोरी करने जाता था, वहां दिवार या दरवाजे में अपनी कला का प्रयोग करते हए अनोखे अंदाज से छेद करता था। एक बार चोरों की टोली एक सेठ के घर सेंध मारने पहुंची। और उस चोर ने अपनी पूरी कला का उपयोग करते हुए दीवाल में एक सुराख बनाया कमल के आकार का। इसे देखकर बाकी के चोर उसकी प्रशंसा करने लगे।

उसने कहा कि जाओ और अपना काम कर के आओ। सरदार ने कहा कि तुम अंदर जाओ। लेकिन सेठ जाग रहा था। जैसे ही कलाकार चोर अंदर घुसा, सेठ ने उसके हाथ पकड़ लिए। वह घबराकर चिल्लाने लगा, पीछे से साथियों ने उसके पैर पकड़ लिए। अब सेठ और उसका परिवार चोर को अंदर खींच रहे थे, वहीं उसके साथी उसे बाहर। चोर अपनी ही कलाकारी में फंस गया और इसी खिंचातानी में उसकी मौत हो गई। प्रभु फरमाते हैं कि ऐसा ही होता है उस व्यक्ति का जीवन को परम सत्य को नहीं जनता है। अंतिम समय में परिवार वाले एक तरफ खींचते हैं, दूसरी तरफ कर्म खींचता है। परिवार वाले छोड़ते नहीं हैं, और कर्म ले जाए बिना रहता नहीं है। इन दोनों के संघर्ष के बीच चेतना लहूलुहान हो जाती है।

कई संकल्प होते हैं, उसमे एक है बन्धुव्रत, सुख-दुःख में साथ रहेंगे। लेकिन एक पराम सत्य है जीवन का, जिसे जितना भी नजरअंदाज करो, उसे उभरकर आना ही है। सत्य को तुम देखो या न देखो, सत्य बना रहता है। अनदेखा करने से कर्म का सत्य समाप्त नहीं होता। जिस समय कर्म के फल का उदय होता है, उसे कोई बांट नहीं सकता। दर्द खुद को झेलना पड़ता है। एक सोच बनी हुई है कि मेरे पास धन है, इससे मैं सब कुछ कर लूंगा, लेकिन यह भ्रम है। धन से बहुत कुछ हो सकता है, लेकिन धन उसी के काम में आता है जो होश में रहता है। जो प्रमाद में चले जाते हैं उनको धन भी सुरक्षा नहीं दे पाता है।

प्रभु फरमाते हैं कि उजाला हुआ है, उजाले के चले जाओ। उजाले को आप इकट्ठा नहीं कर सकते। उजाला जबतक है तबतक है, और जब यह चला गया तो देखा हुआ भी अनदेखा हो जाता है। एक बार अंदर से मोह का तूफ़ान आ गया, अनंत वैर की जागृति हो गई, अनंत अनुबन्धी कषाय का उदय हो गया तो अंदर में जला हुआ धर्म का दिया बुझ जाता है। और इस दिए के बुझने के बाद देखा हुआ भी अनदेखा हो जाता है।

मौत रुलाती है रोने वालों को, मौत जगाती है जागने वालों को। जो दूसरे की मौत पर रोते हैं, वे कभी जाग नहीं पाते। जो मृत्यु को देखकर जाग जाते हैं, वे मंजिल पर पहुंच जाते हैं। जैसे स्थूलिभद्र अपने पिता की मौत के बाद रोया नहीं, जाग गया और उसने भोग-वासना के जीवन का त्याग कर संयम का मार्ग अपनाने का निश्चय किया और पहुंचा गया संभूती विजय के पास और दीक्षा ग्रहण की।

पूरी नगरी में हाहाकार मच गया, जो व्यक्ति वासना का भोग का पुजारी था, उसने दीक्षा ग्रहण कर ली, मुनि बन गया। चातुर्मास का पल आया और स्थूलिभद्र ने अपने गुरु से कहा कि मैं रूपकोषा के महल में चातुर्मास करूंगा। और संभूति विजय ने उसे अनुमति दे दी। नगरी में शोर मच गया कि स्थूलिभद्र रूपकोषा को अब तक नहीं भूला है। लेकिन जागा हुआ व्यक्ति हार नहीं सकता है। स्थूलिभद्र जागा हुआ था। महल में रोज नृत्य चल रहा है, बढ़िया से बढ़िया भोजन मिल रहा है। रूपकोषा अपनी पूरी ताकत लगा देती है उसे रिझाने के लिए, लेकिन स्थूलिभद्र तो परम योगी बन गया है, ऐसा अपने ब्रह्मचर्य में स्थिर हो गया कि उसके सामने रूपकोषा की वासना समाप्त हो गई और उसने भी दीक्षा ले ली। दिया वही होता है जो दूसरे दिये को जला सके। जो दूसरे दिये को जला न सके वो दीपक नहीं है।

रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि रायपुर की धन्य धरा पर 13 नवंबर तक लालगंगा पटवा भवन में उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है। उन्होंने बताया कि आज के लाभार्थी परिवार थे : श्री मांगीलालजी सुनील कुमारजी पारख परिवार (वालफोर्ट ग्रुप)। 27 अक्टूबर के लाभार्थी परिवार हैं श्री भीखमचंदजी प्रदीपजी दिलीपजी अभिषेकजी गोलेच्छा परिवार। श्रीमद उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के लाभार्थी बनने के लिए आप रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा से संपर्क कर सकते हैंl

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