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मोह संसार में जीव को रुलाता है: दर्शन मुनि जी मासा

मोह संसार में जीव को रुलाता है: दर्शन मुनि जी मासा

सौभाग्य प्रकाश संयम सवर्णोत्सव चातुर्मास खाचरोद

पुज्य श्री दर्शन मुनि जी मासाः→ यह जीव संसार के अन्दर घुमता हे ? मोह के कारण! मोह संसार में जीव को रुलाता है। पदार्थ, परिवारिक, साधुसंत का मोह हम, छोड़ने को तैयार नहीं। मोह से कर्मों का बंधन कर रहे हो। मोह रखते हे पदार्थ के अन्दर परिवार के लिये मोह रखते है। जो मोहित होता हे वह अपना भान भुल जाता है वह नशे में हे ,,,मोह के। *मोहनीय कर्म की 28 प्रकृतिया है*, मिथ्यात्व, सम्यक, मिश्र मोहनीय तीन भेद हे, 25 मिथ्यात्व बताये हे, मिथ्यात्व छोड़ना मुश्किल है। चेलना रानी जिनेश्वर देव को मानने वाली राजा श्रेणिक गौतम बुद्ध को मानने वाले थे। वह डिगी नहीं, डीगने वाले को स्थिर कर दिया। मिथ्यात्व से समयकत्व में स्थिर कर दिया।

*पुज्य प्रवर्तक की प्रकाश मुनि जी मासा* →

*संशुद्ध स्वात्मरत-धर्म-सुचीर्ण-तत्त्वम् ।* *देहात्मभेद-परिपुष्ट – जितेन्द्रियत् त्वम् ।*

*सर्वेषु यः प्रथित मालवसिंह नाम्ना ।* *सौभाग्य सद्गुरुवरं शिवदं स्मरामि ॥४॥* विद्वद्वर्या डॉ. श्री ललित प्रभाजी म.सा. गुरुदेव श्री सोभग्यमल महारासा के लिए कहते है कि ..शुद्धतापूर्वक आत्मा में लीन रहने वाले। सत्य का महत्व बढ़ाने वाला असत्य, अपरिग्रह का महत्व बढ़ाने वाला परिग्रह, शुद्ध भी सम्यक (आत्मा) शुद्ध, जो मन, वचन, काया से शुद्ध है ऐसा कोन हे! जो आत्मा में रहता है। पदार्थ का स्वरूप मलिन है।

साधु के लिये बात बताई है नदी के किनारे पानी नहीं पीना, कुछ जगह ऐसी होती है वहाँ साथ नहीं करना। शराब की दुकान संयोग स्थल शुद्ध नहीं इसको कहते है क्षेत्र शुद्धि, जिसके साथ रहना चाहते हे वैसा होता है। मन के अनुसार दुख! होता है। खुद की खुशी वाला दुःखी होता है,,,दुसरे की खुशी देखने वाला सुखी रहता है। यहाँ भी सुखी आगे की सुखी।

*मघवियं*- मुनि सरलता, कोमल बनाने का उपदेश करे। करुणा की ताकत मतलब –महिला मधुर बोलती है तो बात मान जाते है, शब्दों का माधुर्य मतलब करुणा । जिन शब्दों में माधुर्य गुण होता है वह करुणा जगाता है। दुसरों के लिये करुणा रखना, बोद्ध धर्म की करुणा की लिमिट है हमारे यहाँ *84 लाख जीव योनि के लिये करुणा है।*

 दुःखी काय से हुए ! चार आदमी में बंध गये। बाकी की जगह करुणा का प्रवाह बंद होता है। हमारा जीवन बंध गया …वह करुणा से दुर हो गया। पराये पन से करुणा दुर होती है। महापुरुष का जीवन निर्बंध होता है ,पहले घर वालो से प्रेम करना सीखो,, साधु संसार ( समस्त जीवों) से प्रेम करता है। जो व्यक्ति परिवार से प्रेम नहीं करेगा वह यहाँ आके भी खुरापात करेगा।

*सन्यास* – प्रेम का विस्तार होता है, सत्य में कदम रखना है, सत्य हे हर जीव एक समान है, प्रेम का संकुचन नहीं होता सन्यास के बाद यदि साधु बंध जाता है तो विकास नहीं कर पाते है। हर परम्परा दुसरी परम्परा को गलत मानते है। अपने में अस्त तिथि को प्रतिक्रमण होता है उदित मतलब सूर्य तिथि, अस्त मतलब चंद्र तिथि । चार संवत सरि हो गई, सही कौन ?

 हम क्षमाते है जिसको अपना मानते है। जिसके साथ रहते हो ।

भाव शुद्ध नहीं! करुणा अपनो तक सीमित रह गई। बंधन है वहाँ सुख नहीं। खुशी दोगे तो खुशी मिलेगी। किसी को खाने में किसी को खिलाने में खुशी होती है, किसी को देने में खुशी किसी को लेने में खुशी, किसी को बांटने में खुशी किसी को अवरने में खुशी।

 मुस्कराओ तो सही! सीख लो ! हंसते रहो। मन की खुशी किसी को खुश देखकर मिलती है मतलब हम जीवन जी रहे है…अगर खुशी नही उसमें जीवत्व नही! मरा-मरा नहीं जीना *मधविया*-शब्द जीने की प्रेरणा देता है। किसी से नुकसान हो गया तो करुणा करना कि क्रोध करना? भड़ास निकालना अलग। हमारी नराजगी, क्रोध दुसरो पर उतारते है, करुणा परिवार, मोहल्ले, गांव से प्रेम करे संत जहाँ जाय *माधुर्य* गुण से रहे। माधुर्य है तो करुणा रहेगी। सेठ-श्रेष्ठ शब्द बोलते – 2 सेठ हो गया ! *मनुष्य जीवन में आया वह श्रेष्ठ है ही, आर्य कुल, निरोगी काया मिली श्रेष्ठ हैं ही।* अच्छा बोला स्वीकार तो करो। आपके, बोल, सोच बताती है सुखी होना नहीं चाहते हे। विश्वास नहीं तो पुछते क्यों हो ! नहीं हुआ तो ! *तो* लगाना यह विश्वास उठ गया। अच्छे समय पर निकला शब्द भी तुम्हारे काम का नहीं रहा!

कारुण्य भाव दुसरे को खुशी देकर मिलता है। भ्रांति निकाल दो मंत्र से खब कुछ होगा! हम अंतर से, ईष्या द्वेष से भरे है,, अशुद्ध विचार है तो मंत्र भी काम नहीं करता । यंत्र सिद्ध करने के बाद लेमिनेशन नहीं करना। लिखते समय उल्लास भाव श्रृद्धा होना ! मुल जीच है।

 आयुर्वेद में आता है कि *चार चीज* पर श्रद्धा होना चाहिए वेध पर श्रद्धा होना, दवाई, पत्थ्य पर, खुद पर श्रृद्धा होना तो वह दवाई काम करती है। डॉ कितना बड़ा हो विश्वास होना चाहिए। भाव शुद्ध तो दवाई काम करती है।

 भाव शुद्ध हो तो मंत्र भी काम करता है। करुणा का भाव होना चाहिए। चार जनो में करुणा प्रेम नहीं कौन सा जीवन जीते है? कोई यदि अपने घर की बुराई करता है वह सबकी निंदा करेगा। जिसको दृष्टि दोष हो गया उसको कुछ अच्छा नहीं लगेगी। चार जनो में माधुर्य, करुणा नहीं तुम्हें और कहाँ से मिलेगी करुणा ?

मुस्कराते हुए जाओ …खुश रहना चाहता हुँ ! चेहरे के भाव बताते है कि आपका दिल कितना सरल व कठोर है। कोमल भाव रखो कर्म कम बंधेगा । सब खुश रखने वाला खुश रहा हैl

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