वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में चतुर्मासार्थ विराजित श्री जयधुरंधर मुनि ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि हर व्यक्ति को अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। लक्ष्य निरर्थक एवं दिशाविहीन नहीं होना चाहिए। इच्छा एवं लक्ष्य में अंतर बताते हुए मुनि श्री ने कहा मात्र इच्छा रखने से ही मंजिल प्राप्त नहीं हो सकती।
लक्ष्य प्राप्ति के लिए धैर्य, आत्मविश्वास, इच्छाशक्ति एवं सम्यक् पुरूषार्थ होना जरूरी है। सही दिशा से ही व्यक्ति की सही दशा संभव है। एक आदर्श श्रावक देव दुर्लभ मनुष्य भव प्राप्त करने के बाद अपने चरम और परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति हेतु निरंतर प्रयत्नशील रहता है। जीवन में लक्ष्य का होना बहुत जरूरी है। लक्ष्य बिना जीवन बिना ब्रेक की गाड़ी के समान है।
कोई भी यात्रा करता है व्यक्ति अगर वह अपने लक्ष्य को निर्धारित नहीं करता है तो वह भटकता ही रहता है। लक्ष्य की प्राप्ति होना ही लक्ष्मी है। चाहे भौतिक जीवन हो या आध्यात्मिक जीवन हर क्षेत्र में लक्ष्य होना जरूरी है। व्यापारी का लक्ष्य होता है धन कमाना एक आत्मार्थी का लक्ष्य होता है मोक्ष की प्राप्ति करना ।लक्षय की प्राप्ति पुरुषार्थ से सफल होती। लक्ष्य कभी कल्पनिक नहीं होनी चाहिए। अपितु ऐसा हो जो प्राप्त किया जा सकता है।
लक्ष्य की पूर्ति जब तक ना हो तब तक पुरुषार्थ करते जाना चाहिए। लेकिन साथ में यह भी ध्यान देना चाहिए कि वह समय पर पूरा हो। असमय पर हुए कार्य की कोई महत्वता नहीं है। जैसे एक यात्री ट्रेन रवाना होने के बाद अगर वह स्टेशन पहुंचे तो उसका कोई औचित्य नहीं।
मनुष्य भव की प्राप्ति अपने चरम और परम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ही मिली है और एक श्रावक का परम और चरम लक्ष्य है मोक्ष की प्राप्ति। इसलिए अपना अमूल्य समय साथ में लगाना चाहिए।चौमासी के पावन अवसर पर मुनि ने कहा तीन प्रकार के चतुर्मास होते हैं आषाढी, कार्तिकी एवं फाल्गुनी।
कार्तिकी पूर्णिमा साधकों को पूर्णता की ओर ले जाती है । चातुर्मास का समापन एक नई आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत है। मुनिवृंद के सानिध्य में 12 नवंबर को लोकाशाह जयंती एवं 13 को प्रातः 8.30 बजे चातुर्मास उपरांत प्रथम विहार बिन्नी मिल नार्थ टाउन की ओर होगा।