चेन्नई. साध्वी इंदुबाला के सान्निध्य में किलपॉक स्थित कांकरिया हाउस में साध्वी मुदितप्रभा ने श्रावक जीवन की चर्या व श्रावक के आदर्श गुणों की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि एक श्रावक नास्तिक को आस्तिक बना सकता है।
श्रावक श्रद्धावान, विनयवान होकर अपनी आराधना से मोक्ष को निकट कर सकता है। इससे पूर्व उन्होंने युवाओं की प्रवचन माला जिनशासन की पुकार में आत्मा का ज्ञान औऱ आत्मा का विज्ञान पर उद्बोधन देते हुए कहा कि मैं कौन हूं, इसकी समझ होना ही समकित की पहली सीढ़ी है। मिलना और भी मेरा गुण और स्वभाव नहीं है।
मैं अनुभव नहीं हूं बल्कि इन सबको जानने वाला अनुभवी हूं। जैन धर्म गहरा है जो भी इसमें डुबकी लगाता है उसे आत्मा का रत्न मिलता है। पुद्गल का स्वभाव है मिलना और बिछुडऩा। आकाश का स्वभाव है जगह देना।
हमेें सोचना होगा और जानना होगा कि मैं कौन हूं और कौन नहीं। किसी को अपना और किसी को पराया इस भेद रेखा का नाम संसार है। साध्वी इंदुबाला ने मांगलिक प्रदान की। यह जानकारी किलपाक संघ के अध्यक्ष सुगंचन्द बोथरा ने दी।
विपाक सूत्र के माध्यम से वीरेंद्रमुनि मुनि ने की अहिंसा व्रत की व्याख्या