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मोक्ष को पाना है तो पद्म बनना पड़ेगा

मोक्ष को पाना है तो पद्म बनना पड़ेगा
24 तीर्थंकर पर आधारित अपनी प्रवचन माला के अंतर्गत पूज्यश्री सौम्यदर्शन जी म.सा. ने छ्ठे तीर्थंकर पद्म प्रभु जी के बारे में फ़रमाया की जब प्रभु रानीमाता के गर्भ में आए तब रानी को यह भावना उत्तपन्न हुई की उन्हें लाल पदम की शैय्या पर विश्राम करना है, राजा ने उनकी इच्छा पूरी करवाई, और जब बालक का जन्म हुआ उसका नाम पद्म रखा गया  और आपका चिन्ह भी लाल पद्म है ।
मोक्ष को पाना है तो पद्म बनना पड़ेगा। पद्म मतलब है कमल । कमल का जन्म कीचड़ में होता है लेकिन वो कीचड़ में गलता नही है, सड़ता नही है, धँसता नही है। कमल कीचड़ से ऊपर रहता है, कीचड़ से निर्लिप्त रहता है। कमल के ऊपर एक झिल्ली होती है। उसे सड़ने गलने से बचाती है ।
ये कमल और झिल्ली हमें संकेत देता है की हमने संसार रूपी कीचड़ में जन्म लिया है, लेकिन संसार के भोग में धँसना नही है ।
अपने आप को सूखे नारियल जैसा बनाओ। नारियल 2 प्रकार के होते है एक पानीवाला और दूसरे वाला सूखा । गीले नारियल को फोड़ने के बाद उसमें से गिरी निकालने के लिए मशक्कत करना होती है । गिरी नारियल के खोल से चिपकी हुई रहती है, मतलब गीला नारियल टूट जाती है लेकिन खोल को छोड़ता नही है और सूखे नारियल को फोड़ो तो पूरा का पूरा गोला या गिरी अपने आप बाहर निकल जाती है।
हमें भी सूखा नारियल बनना है, भले ही संसार में रहे लेकिन संसार से चिपक कर नही रहे, ताकि जब भी अवसर मिले संसार से आराम से अलग हो  सके ।
फेविकोल के जोड़ को, केमिकल के जोड़ को और वेल्डिंग के जोड़ को एक बार खोला जा सकता है लेकिन संसार से जो हमारा लगाव है जोड़ है उसे खोलना बहुत मुश्किल है।।
नवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ जी के नाम अर्थ सु-पार्श्व जँहा सु मतलब अच्छा मित्र या अच्छा परिवर्तन करने  वाला । गर्भ धारण के पहले रानी कुरूप थी, लेकिन जब ये बालक गर्भ में आया तो रानी के रूप में निखार आने लगा और वो कुरूप से सुरूप बन गई । इसलिये जन्म के बाद बालक का नाम सुपार्श्व रखा गया ।
हमारा मित्र भी सुपार्श्व होना चाहिये और हमारी भी यह कामना होनी चाहिए की हम सुपार्श्व बने। हमारे मित्र अच्छे हो, हम अच्छे मित्र बने । हम जब परिवर्तन करे तो अच्छा परिवर्तन करे। आपके जाने के बाद आपकी मित्र मंडली में पाप की बाते ज्यादा होती है या पूण्य की इस तरह से अपने आप को चेक करे । दुर्योधन ने कृष्ण की सेना मांगी और अर्जुन ने कृष्ण जैसे मित्र को निहत्थे सारथी के रूप में चुना परिणाम सभी जानते है । इस प्रकार सुपार्श्वनाथ हमें संकेत देता है की अच्छे मित्र बनाओं ।
उनक चिन्ह स्वास्तिक है । स्वास्तिक मंगल का प्रतीक होता है । स्वास्तिक हमें संकेत देता है की जैसे में मुझे लगाने से मंगल होता है वैसे ही तू भी अपने आप को मंगल बना ले । तू जँहा जाए वँहा तेरा मान सम्मान हो संस्कार हो, मंगल का प्रतीक हम तभी बनेंगे जब हम सुपार्श्वनाथ के गुणों को और उनके चिन्ह हो ग्रहण करेंगे । जय गुरू पन्ना ,जय गुरू सोहन सुदर्शन ।

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