*साधना में सहयोगी बन रही प्रकृति*
*श्रद्धालुओं का निरन्तर बढ़ रहा प्रवाह*
माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में आचार्य श्री महाश्रमणजी के शिष्य मुनि श्री दिनेशकुमार ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि पूरे लोक में ऐसी कोई जाति नहीं, ऐसी कोई योनि नहीं, ऐसा कोई स्थान नहीं, ऐसा कोई कूल नहीं, जहां पर इस जीव ने जन्म नहीं लिया हो और मृत्यु को प्राप्त नहीं किया हो|
दुनिया में ऐसा कोई स्थान नहीं जहां इस आत्मा ने जन्म नहीं लिया हो| अनादि काल से यह आत्मा परिभ्रमण कर रही है| फिर प्रश्न उठता है कि यह आत्मा का परिभ्रमण कब रुकेगा?
मुनि श्री आगे कहा कि जिस दिन हम कर्मवाद को समझकर क्रिया या कार्य शुभता की और करते जाएंगे, तो हमारा कर्म बंधन एकदम रुक जाएगा और जो भीतर में हैं, वह भी पूरा खाली हो जाएगा|
आत्मा सदा – सदा के लिए इस जन्म मरण की श्रृंखला से छूट जायेगी
*हमें कर्मवाद को इसलिए जानना जरूरी है कि मोक्ष मार्ग के लिए सम्यक् दर्शन जरूरी है* और सम्यक् दर्शन के लिए कर्मवाद को समझना जरूरी है कि सम्यक् दर्शन कब आता है|
सबसे पहले मोहनीय कर्म जो मिथ्यात्व, सम्यक्त्व को बाधित कर रहा हैं, उस मिथ्यात्व को तोड़ने का प्रयत्न होता है और वह प्रयत्न ही व्यक्ति को आगे बढ़ाता हैं|
मुनि श्री ने आगे कहा कि एक समय आत्मा के साथ ऐसा जुड़ता है, वह आत्मा उस मोह कर्म के अनन्तानुबंधी कर्म को एकदम क्षीण कर देता है अथवा उसका क्षयोपक्षम कर देता है अथवा उसका उपशम कर देता है|
जिसने क्षीण कर दिया, उसकी तो कोई बात ही नहीं है, उसकी जैसी तो कोई सानी नहीं, क्योंकि जब अनन्तानुबंधी चतुष्क और दर्शन त्रय इतना क्षय हो जाता हैं, उसके बाद में वह आत्मा अनन्त काल तक इस संसार में परिभ्रमण नहीं कर सकती, ज्यादा से ज्यादा तीसरे भव में वह आत्मा मोक्षगामी बन जाएंगी|
जिस आत्मा ने इस मोहनीय कर्म की सात प्रकृतियों का क्षय नहीं किया उपशम किया, दबाया हैं, तो एक बार सम्यक्त्व को प्राप्त करने के बाद अर्दपुदगल् परावर्तन काल में अवश्य मोक्ष को प्राप्त करेंगी|
मिथ्यात्वी की अपेक्षा सम्यक् दर्शन प्राप्त आत्मा कर्मों का संगन बन्धन नहीं करती| सम्यक्त्व के बाद ही आत्मा श्रावक बन सकती हैं, साधु बन सकती हैं|
मुनि श्री ने आगे कहा कि *मिथ्यात्वी साधु भी बन जाता है, आचार्य भी बन जाता है, लेकिन वह सम्यक् दर्शन नहीं होने के कारण मोक्षगामी नहीं बन पाता|
मुनि श्री ने आगे कहा कि *साधक को अपने साधना काल में अपनी भावधारा, अपनी लेश्या को शुभ रखते हुए साधना के पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी, ताकि हमारी आत्मा कर्म बन्धन से मुक्त बन कर, इस संसार के परिभ्रमण को कम करके, अंतिम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर सके, सिद्ध, बुद्ध बन सके|
*साधना में सहयोगी बन रही प्रकृति*
आज मध्य रात्रि से रिमझिम बारिश के कारण सूर्य अपनी कलाएँ नहीं बिखेर पाया| जिससे तपस्या, प्रत्याख्यान इत्यादि साधना में संलग्न रहने वालो के लिए प्रकृति अनुकूल बन रही हैं|
*श्रद्धालुओं का निरन्तर बढ़ रहा प्रवाह*
आचार्य श्री महाश्रमणजी के चेन्नई चातुर्मास हेतू प्रवेश से लगाकर आज 22वें दिन लगातार देश विदेश से श्रद्धालु परम् पूज्य की मंगल सन्निधि को प्राप्त करने के लिए पहुंच रहे हैं|