Share This Post

Featured News / ज्ञान वाणी

मोक्ष के पहले वीतरागता की प्राप्ति अत्यावश्यक: आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर

मोक्ष के पहले वीतरागता की प्राप्ति अत्यावश्यक: आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर

चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर ने कहा संसार एक रंगभूमि है। यहां संसार का नाटक चल रहा है जिसमें सब अपना पात्र निभा रहे हैं। कर्म और काल की परिणति एक दूसरे के पूरक है। जो काम जिस समय होने वाला है उसी समय पर होगा।

महावीर भगवान की आत्मा को भी सम्यक दर्शन होने के बाद भी नरक में जाना पड़ा। संसार के नाट्यक्रम में राग और द्वेष भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं। क्रोध, मान, माया, लोभ अपने गीत गा रहे हैं और नाटक के मुख्य सूत्रधार महा मोह है। उन्होंने कहा हमारा जीवन दो प्रकार का है व्यावहारिक और धार्मिक।

कुटुम्ब, परिवार, व्यापार आदि व्यावहारिक जीवन का हिस्सा है, वहीं परलोक के लिए तप, त्याग, धर्माराधना कर लेते हैं। व्यावहारिक जीवन के लिए हमारा लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा सुख सुविधा का हो सकता है। लेकिन जीवन में वीतरागता व मोक्ष की अभिलाषा का लक्ष्य होना चाहिए। मोक्ष प्राप्ति के लिए कई सीढिय़ां होती है लेकिन कहीं न कहीं नीचे गिर जाते हैं।

मोक्ष के पहले वीतरागता की प्राप्ति करना अत्यंत आवश्यक है। राग, द्वेष के सम्पूर्ण क्षय से वीतरागता मिल सकती है। वीतरागता यानी शान्त होना। शान्त रहने के लिए तीन चीजें याद रखें-प्रतिक्रिया रहित बनना, उत्तेजनारहित बनना एवं आतुर्ता रहित बनना। महावीर भगवान के जीवन में कई उपसर्ग आए लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं की, शान्त रहे।

हम कितना शान्त हुए, यह आत्म निरीक्षण कर लेना यानी क्रियारहित बनने का लक्ष्य होना चाहिए। सम्पूर्ण क्रिया रहित बनने के लिए शुभ क्रिया कोई भी करो लेकिन लक्ष्य वही होना चाहिए। प्रभु का अहोभाव करते समय अपनी आत्मा में देखो कि मेरे अंदर उसकी थोड़ी छाया पड़ी या नहीं। उन्होंने कहा जन्म और मृत्यु का नाटक अनंत बार हो चुका है।

नए रूप, आकृति, शरीर को धारण कर इस संसार में नाटक चल रहा है। कर्म और काल की परिणति के अनुसार जीवन जीना होता है, यही संसार का स्वरूप है।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar