राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्री ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि शांति, सिद्धि और प्रगति के द्वारों को खोलने का दुनिया में सबसे महत्त्वपूर्ण मार्ग ध्यान है। इंसान जब-जब दुखी, चिंतित अथवा तनावग्रस्त हुआ तब-तब ध्यान ने उसे समाधान का मार्ग दिया है। ध्यान ने अतीत को संवारा है और इसी से वर्तमान और भविष्य को संवारा जा सकता है। ध्यान तो जिंदगी की घड़ी में भरी जाने वाली चाबी है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने चैबीस घंटों को चार्ज कर सकता है।
अध्यात्म का सार है ध्यान। जिस ईश्वरीय तत्त्व की तलाश व्यक्ति जीवनभर बाहर करता है, वह तो उसके भीतर है जिसका साक्षात्कार ध्यान से संभव है। महावीर और बुद्ध जैसे महापुरुषों ने ध्यान के माध्यम से ही परम सत्य को उपलब्ध किया था। उन्होंने कहा कि शरीर के रोगों को मिटाने के लिए मेडीसिन है और मन के रोगों को मिटाने के लिए मेडीटेशन है। अगर प्रतिदिन केवल बीस मिनिट का ध्यान किया जाए तो दिमाग की दौ सौ बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है।
मेडीसिन रोगों को मिटाती नहीं बल्कि उन्हें दबाती है और जिस तरह से आज मेडीसिन के साइड इफेक्ट बढ़ते जा रहे हैं ऐसे में एकमात्र मेडीटेशन ही परफेक्ट एवं साइड इफेक्ट से मुक्त है। हम मेडीटेशन अपनाएं और मेडीसिन से छुटकारा पाएं।
संत ललितप्रभ कोरा केन्द्र मैदान में बुधवार को ध्यान से बढ़ाएं आध्यात्मिक शक्तियाँ विषय पर जनमानस को संबोधित कर रहे थे। संतप्रवर ने कहा कि ध्यान संसार को त्यागने की नहीं, संसार में जीने की कला है। सौ जगह भटकते मन को एक जगह लाकर स्थित करने का नाम है ध्यान। उन्होंने कहा कि ध्यान केवल आँखें बंद कर बैठने का नहीं, वरन् जीवन की हर छोटी-से-छोटी गतिविधि को जागरूकता पूर्वक करने का नाम है।
ध्यान का उद्देश्य व्यक्ति को एकाग्र और तरोताजा करना है। आंधे घंटे का ध्यान करके व्यक्ति चैबीस घंटों को ऊर्जावान बना सकता है। सब्जी का फीकी या खारी हो जाना, रोटी का जल जाना, पापड़ का सही न सिकना, चलते वक्त पत्थर से ठोकर खा बैठना, दुर्घटना का शिकार हो जाना, दाँत के नीचे जीभ का आना, ये सब और कुछ नहीं, ध्यान से चूकने के परिणाम है। ध्यान के प्रयोग कर विद्यार्थी शिक्षा में और व्यापारी व्यापार में नई सफलताओं को छू सकता है।
ध्यान से पाएं चचंलता से मुक्ति-संतश्री ने कहा कि आज हर व्यक्ति चचंलता से परेशान है। पूजा में, माला में, पढ़ाई में मानसिक चचंलता के चलते ये लोगों को सकारात्मक परिणाम नहीं दे पाते हैं। ध्यान से चंचलता का समाधान संभव है।
ध्यान बिना सारा धर्म-कर्म निष्फल है। जिस तरह महिला पापड़ सेकते समय एकाग्र, तन्मय व जागरूक रहती है वैसे ही हर कार्य को व्यक्ति एकाग्रता से सम्पादित करने लग जाए तो जीवन की प्रगति निश्चित है। जैसे नियमित अभ्यास के कारण गृहिणी आँखों पर पट्टी बांधकर भी अच्छी रोटी बेल सकती है, वैसे ही लगातार ध्यान के प्रयोग से मन एकाग्र व शांत हो जाता है और व्यक्ति की मानसिक क्षमता, बौद्धिक प्रज्ञा और आध्यात्मिक शक्तियाँ जाग्रत होने लगती है।
ध्यान का मार्ग सबसे सरल-ध्यान के मार्ग को सबसे सरल बताते हुए संतश्री ने कहा कि पूजा करने, सामायिक-प्रतिक्रमण करने अथवा तीर्थयात्रा करने के लिए तो व्यक्ति को प्रयास करना पड़ात है, पर ध्यान के लिए कुछ करना नहीं पड़ता वरन जहाँ बैठे हैं, वहीं आँखें बंद कर स्वयं में उतरना होता है। विपरीत वातावरण में भी सहज रहने, हर निर्णय को जागरूकतापूर्वक कर लेने की कला का विकास ध्यान से होता है। अगर कभी किसी काम में मन में लगे अथवा तन-मन में बैचेनी का अनुभव हो तो व्यक्ति किसी शांत स्थान पर जाकर बैठ जाएं और ध्यान में उतर जाए, वह पुनरू नई ताजगी और आनन्द से भर उठेगा।
ध्यान में निम्र बातों का रखें ध्यान-ध्यान की पूर्व भूमिका के रूप में संतप्रवर ने कहा कि ध्यान के लिए शांत एवं स्वच्छ स्थान का चयन करें, कपड़े श्वेत व ढीले हो, पद्मासन, सुखासन अथवा वज्रासन में बैठें, मेरुदण्ड सीधा रखें, हाथों को ज्ञानमुद्रा अथवा योगमुद्रा में रखें, आँखों को बंद कर आती-जाती श्वासधारा पर ध्यान करें और क्रमशः हृदय, मस्तिष्क और सिर की चोटी पर पाँच-पाँच मिनिट मन को एकाग्र करें। यह स्वयं को ऊर्जावान और आनन्दमय बनाने का रामबाण प्रयोग है। संतप्रवर ने ध्यान की सिद्धि के लिए अति सम्पर्क से बचने, आइने की तरह जिंदगी जीने, एकांत व मौन का अभ्यास करने और हर कार्य को सावधानी से करने के मंत्र दिए।
जब संतप्रवर मुनि ष्षांतिप्रिय सागर ने सत्संगप्रेमियों को क्लेपिंग थेरेपी, रबिंग थेरेपी, स्माइलिंग थेरपी, यौगिक क्रिया, मूवमेंटेबल योगा, स्टेचेबल योगा और पावर योगा का अभ्यास करवाया तो पूरा पाडांल योगमय हो गया और श्रद्धालुओं के चेहरे चमक उठे।
समिति के उपाध्यक्ष श्री महेन्द्र भूतड़ा ने बताया कि कोरा केन्द्र मैदान में राष्ट्र-संतों के सानिध्य मेें 6 से 13 सितंबर सुबह 9 से 11 बजे पर्युषण एवं संवत्सरी महापर्व महोत्सव होगा जिसमें सभी धार्मिक परंपराओं का समन्वय होगा। तन, मन और आत्मा धन्य होगी। कल गुरुवार को सुबह 9 बजे राष्ट्रीय संत पूज्य श्री ललितप्रभ जी का विशेष प्रवचन ’क्षमा धर्म का अंतर रहस्य पर्युषण पर्व का प्रथम दिन पर होगा।