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ज्ञान वाणी

“मृत्यु को कभी न भूलें” : मुनि रमेश कुमार

“मृत्यु को कभी न भूलें” : मुनि रमेश कुमार

चैन्नई स्थित शान्तिनाथ जैन भवन में सौहार्द पूर्ण वातावरण में हुआ। आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री रमेश कुमार जी सहवर्ती मुनि सुबोध कुमार जी । तपागच्छ सम्प्रदाय के मुनि भुवन भूषण विजय जी म.सा उनके सहवर्ती मुनि हेमगुण विजय जी, मुनि वाशक्षेप विजय जी ।

परस्पर एक दूसरे की विहार की सुखसाता पूछी। जैन एकता समन्वय की दृष्टि से सामूहिक कार्यक्रम भी इस अवसर आयोजित हुआ।

शान्तिनाथ भवन में आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मुनि रमेश कुमार जी ने कहा– जीवन में सदा धर्माचरण करना चाहिए । जो धर्म का आचरण नहीं करके केवल धन का संग्रह करते हैं वे दु:ख को निमंत्रित करते हैं ।

धार्मिकों को कुछ बाते सदा याद रखनी चाहिए । जैसे दो चीजें कभी न भूलें । एक भगवान को दूसरी बात मृत्यु को । भगवान को याद करें या न करें परन्तु मृत्यु को सदा याद करें । जिससे भगवान स्वत: याद आ जायेगा ।

दो लोगों को कभी नाराज मत करना एक तो भगवान को दूसरा डाक्टर को । भगवान को नाराज कर दिया तो भगवान के पास भेज सकते हैं और डाक्टर को नाराज कर दिया तो वो आपको भगवान के पास भेज देगा ।

दो चीजें कभी याद मत करो। जिसने आपके साथ बुरा वर्ताव किया उसे । दूसरा आपने जिसके साथ अच्छा वर्ताव किया उसे कभी याद मत करो। इतना सा भी आप कर लें तो आपके जीवन व्यवहार में सुख ,शान्ति का वास हो सकता है।

तपागच्छ सम्प्रदाय के मुनि भुवन भूषण विजय जी ने कहा– हम सौभाग्यशाली हैं जिन्हें जिनेश्वर का धर्म मिला है ।

जिनशासन मिला है।मनुष्य का जन्म तो एक स्टेशन मात्र है। हमारा मिशन है मोक्ष ।क्या हम उसके लिए प्रयत्नशील है ?

यदि प्रयत्नशील हैं तो सद्गति होगी । जिनेश्वर धर्म का आचरण पालन जरुर करें । इधर उधर भटकना न पडें और हमारी दुर्गति न हो ।

मुनि सुबोध कुमार जी ने कहा– हमें मनुष्य का जीवन मिला है ।जन्म मिला है तो जी भी रहें हैं ।एक दिन मृत्यु भी होनी है। मनुष्य जीवन का हमारा उद्देश्य क्या हैं ?

क्या हम उच्चस्तरीय जीवन जी रहें हैं या निम्नस्तरीय जीवन । इन्द्रियां और मन का हम कैसा उपयोग कर रहें हैं । अपेक्षा है जीवन व्यवहार को बदलें । जिससे मनुष्य का जीवन सफल हो जायें ।

इससे पूर्व मुनि रमेश कुमार जी ने नमस्कार महामंत्रोच्चारण से हुआ । महावीर स्तुति का संगान किया गया । मूर्ति पूजक संघ की ओर से इन्द्रचन्द जी नौलखा, नरेन्द्र नौलखा, व तेरापंथ समाज की ओर से सम्पतराज गांधी ने स्वागत किया ।

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