चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर ने कहा जीवन में विपत्ति के समय यदि आप अपने आपको पुण्यशाली व भाग्यशाली मानते हैं तब हम मानेंगे कि आप पुण्यशाली और भाग्यशाली हैं। यह सोचो कि पूर्वजन्म में कितना पुण्य, तप आपने किया होगा, तब आपको मनुष्यभव और जैन शासन मिला।
उम्र के साथ धर्मध्यान, समाजसेवा का कार्य करना चाहिए। इस भव में यदि झूठ, वैर, मोह, माया, क्रोध, लोभ होगा तो परलोक को कैसे सुधार पाएंगे। संसार में सुख सम्पत्ति पापानुबन्धी पुण्यों से बंधी है। यदि परलोक की श्रद्धा है तो यह स्मरण रहे कि मेरी मृत्यु के पश्चात कैसा भव मिलेगा।
इसके लिए हमें हर कार्य ऐसे करने चाहिए कि परभव में अच्छा कुल और शासन मिले। आचार्य ने कहा यह कर्मसत्ता का प्रभाव है। कर्मसत्ता किसी की सगी नहीं है। उसके पास एक ही न्याय है, अपराध किया तो दण्ड भोगना ही पड़ेगा चाहे आप तीर्थंकर हो या चक्रवर्ती।
यदि हम स्वीकारते हैं कि परलोक है और वहां अच्छी सद्गति चाहिए तो झूठ, वैर, मोह, परिग्रह, क्रोध की भावना आए तब यह विचार करना। माया, क्रोध, झूठी गवाही, जालसाजी कर रहे हैं तो यह याद रखना परलोक में क्या होगा।
उन्होंने कहा संसार में क्षणिक सुखों को पाने के लिए पाप बढ़ रहे हैं। सिद्धर्षि गणि बताते हैं कि संसार में किसी को कुछ धन सम्पत्ति, पॉवर मिलती है तो वह अपने आपको शहंशाह मानता है, उसके पीछे अहंकार पैदा होता है। गुरुजन का अपमान भी कर बैठता है, यह सुख का घमण्ड है।
अपने पुण्यों पर यदि आपको श्रद्धा है, उन सबके इंश्योरेंस की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। साध्वी जिनआज्ञा की 76वें वर्धमान तप की ओली का पारणा मंगलवार को हुआ।