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ज्ञान वाणी

मूल को भूलने वालों के जीवन में मिलती है धूल: मुनि संयमरत्न विजयजी

मूल को भूलने वालों के जीवन में मिलती है धूल: मुनि संयमरत्न  विजयजी

आचार्य श्री जयन्तसेनसूरिजी के शिष्य मुनि संयमरत्न  विजयजी,आचार्य तीर्थभद्रसूरि जी के शिष्य मुनि तीर्थरुचि जी आदि ठाणा की निश्रा में नव वर्ष पूर्व आचार्य श्री जयन्तसेन सूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित चैन्नई के श्री महाविदेह तीर्थधाम में श्री सीमंधर स्वामी जिनालय एवं दादा गुरुदेव आचार्य श्री राजेन्द्रसूरिजी मंदिर की नवमी वर्षगाँठ का आयोजन ध्वजारोहण के साथ संपन्न हुआ।

इसके पूर्व गुरु मंदिर में निर्मित शत्रुंजय,मोहनखेड़ा,भरतपुर भांडवपुर,महाविदेह धाम तीर्थ, चैन्नई व बाकरा के साथ ही आचार्य श्री राजेन्द्रसूरिजी जीवन चरित्र के चित्रपट्टों का लोकार्पण विभिन्न लाभार्थी परिवारों के द्वारा हुआ।ध्वजारोहण के पश्चात् मुनि संयमरत्न विजयजी ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि ध्वजा हमें सहनशीलता के साथ शालीनता का पाठ पढ़ाती है।

सर्दी,गर्मी व बरसात सब कुछ सहन करते हुए भी ध्वजा बराबर लहराती रहती है,किसी भी परिस्थिति में वह विचलित नहीं होती।इसी तरह जो सहिष्णु होता है,वही विश्व में पूजनीय व सम्माननीय बन जाता है।हमें स्वयं के भीतर गुणों का विकास करने के पश्चात् ही किसी अन्य गुणवान से हमारी तुलना करना चाहिए।केवल ईर्ष्या करने से कुछ नहीं होता।

ईर्ष्या से तो जीवन का पतन होता है।ध्वजा हमें लहराते हुए अपने मूल को नहीं भूलने की प्रेरणा देती है,जिसके सहारे वह टिकी हुई है।मूल को भूलने वालों का जीवन धूल में मिल जाता है।मूल आधार को छोड़ने वालों के जीवन में शूल उग आते हैं,जो बड़े ही दुःखदायी होते है।मूल अर्थात् कभी भी अपने उपकारियों को नहीं भूलना चाहिए।उपकारियों के उपकार को भूलने वाला कृतघ्न,कपूत व कुशिष्य होता है।

जिन्होंने हमें बड़ा किया,अपने पैरों पर खड़ा किया,उन्हीं के पैरों पर कुल्हाड़ी चलाना बहुत बड़ा अपराध है। जिन्होंने हमें ऊपर उठाया और भूलकर भी यदि हम उन्हें अपने स्थान से उठाते हैं,तो समझ लेना कि हमें भी उठने में देरी नहीं लगेगी।

अर्थात् वह नीचे की ओर ही गिरता हुआ चला जाता है।गुरु का अपमान करने वाला भयंकर बिमारी से ग्रस्त हो जाता है।गुरु का सहारा छोड़ने वाला बेसहारा, बेचारा व लाचार हो जाता है।गुरु का अपमान करने वाले को भगवान भी कभी माफ नहीं करते।एक बार प्रभु रूठ गए तो गुरु आसरा दे सकता है,किंतु गुरु रूठ गए तो उसे कोई भी सहारा देने वाला नही मिलता।इसलिए जिसका गुरु खुश,उसकी पूरी दुनिया खुश।

गुरु की नाखुशी में शिष्य की नाखुशी है।अतः भूलकर भी गुरु को अपने स्थान से हटाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।जिसके नौ ग्रहों में गुरु पावरफुल है,उसके कोई भी ग्रह कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।गुरु एक राजा की तरह होते हैं और राजा के सिंहासन को हिलाने वाला खुद बखुद हिल जाता है।

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