समयानुकूल, अर्थात्मक, हितकारी भाषा बोलने की दी पावन प्रेरणा
शब्द हमारे ज्ञान का बड़ा माध्यम बनते हैं| कोई वक्ता बोलता है, तो हम सुनते है, शब्द कान में पड़ते हैं, तब हम बात को, फिर समझते हैं, ग्रहण करते हैं, जानते हैं, उसके अनुसार आचरण भी कर सकते हैं, उपरोक्त विचार माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सूत्र के छठे स्थान के चौवदहवें सूत्र मे छ: इन्द्रियों का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहे|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि शब्द का अपना महत्व हैं| हम बोलते हैं, दूसरे सुनते है| दूसरे बोलते हैं, हम सुनते हैं| हम खुद बोलते हैं, खुद ही सुन लेते हैं| वक्ता स्वयं बोलता हैं, वक्ता अपने व्यक्तव्य को सुन भी रहा हैं| बोलते समय भी सुनता हैं और बाद में संग्रहीत हो जाता हैं, कैसेट, टेप आदि में रेकॉर्ड हो जाता है, उसको बाद में भी वक्ता अपने भाषण को खुद सुन लेता हैं, सुन सकता हैं|
माल अच्छा होगा, तो ग्राहकों को संतोष होगा
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि वक्ता भाषण आदि या बातचीत करे तो यह प्रयास रखे, मेरे शब्दों को दूसरे सुनते है, तो जहां तक हो सके अच्छी सामग्री परोचू, कि सुनने वाला तुप्त हो सके| जैसे माल अच्छा होगा, तो ग्राहकों को संतोष होगा, अच्छा बिकेगा| वैसे ही हमारे शब्दों का माल भी शुद्ध होना चाहिए, अच्छा होना चाहिए, मूल्यवान होना चाहिए|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि शब्दों का माल मूल्यवान कैसे हो सकता हैं? शब्दों में यथार्थता होनी चाहिये| बात गंभीरतापूर्ण होनी चाहिए, अच्छा अर्थ देने वाली हैं, अर्थात्मा है, उपयोगी है, समयानुकूल है, तो वह शब्द सामग्री हमारी मूल्यवान है, अच्छी होती हैं, ऐसा माना जा सकता हैं|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि शब्द का प्रयोग हम जप में भी कर सकते हैं| नवरात्रि का अनुष्ठान चल रहा हैं| हमारा अनुष्ठान चल रहा हैं, उसमें एक बड़ा तत्व है, शब्द| हम शब्दों का उच्चारण करते हैं और पुन: पुन: उच्चारण करते हैं, तो यह शब्द की अपनी प्रभावशीलता होती हैं| आचार्य श्री ने कथानक के माध्यम से समझाते हुए कहा कि अल्पज्ञानी हैं, पूर्ण ज्ञान का अभाव हैं, तो एक दृष्टि से व्यक्ति मूर्ख हो सकता हैं| बेवकूफ कहने वाला खुद भी बेवकूफ होता हैं| अत: शब्दों का अपना प्रभाव होता हैं, चमत्कार हो सकता हैं|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि शब्द का हमारे मन पर भी असर पड़ता है| माला, जप हम करते हैं, पवित्र शब्दों का उच्चारण करते हैं, स्मरण करते हैं, फिर उस शब्द में वो अर्थात्मा जो हैं, “णमो अरहंताणं” हम अर्हतों को नमस्कार करेंगे| तो यह अर्हत के साथ हमारा किसी रूप में तादात्म्य होता हैं, तो हमारी चेतना पर अच्छा प्रभाव पड़ता हैं| अच्छी भावना के साथ जाप करने से, उनकी तरंगों से, हमारी चेतना, हमारे मन पर अच्छा प्रभाव पड़ सकता हैं|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि नमस्कार महामंत्र का जप करना चाहिए, जैन हैं इसीलिए नहीं| नमस्कार महामंत्र अपने आप में एक महत्वपूर्ण शब्द संयोजना वाला मंत्र हैं| आचार्य श्री ने जनमेदनी को संबोधित करते हुए कहा कि मेरा तो सोचना है कि अजैन लोग भी भले नवकार मंत्र का जाप करे, एक अच्छा महामंत्र हैं| आचार्य श्री ने विशेष पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि हम अपनी भाषा में, भाषण में, व्याख्यान में, ऐसे शब्दों का प्रयोग करे, जो शब्द श्रोत्राओं के द्वारा प्राय: ग्राह भी हो सके, समझ में आ सके और श्रोत्राओं को कोई खूराक भी मिल सके|
बालोतरा संघ ने कि चातुर्मास की विनती
परमाराध्य आचार्य प्रवर के चेन्नई पदार्पण से ही देश के विभिन्न क्षेत्रों से लोगों का संघबद्ध आने का सिलसिला बरकरार है| आज भी राजस्थान के बालोतरा से एक अष्टदिवसीय गुरू उपासना में करीब 300 व्यक्तियों का संघ आया हुआ है, उसने आचार्य प्रवर एवं साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभाजी की अलग-अलग सेवा की| बालोतरा तेरापंथ सभा अध्यक्ष श्री शांतिलाल डागा, मंत्री श्री गौतमचन्द श्रीश्रीमाल, देवराज खिवसरा, भंवरलाल भावाणी, श्रीमती विमला गोलेच्छा आदि ने व्यक्तव्य, स्वरूप चन्द दाँती, राणमल बालड़, गौतमचन्द वैदमुथा ने गीतिका के माध्यम से आचार्य प्रवर से आगामी वर्षों में चातुर्मास के लिए अर्ज की, निवेदन किया|
आचार्य श्री महाश्रमणजी ने इस पर कहा कि सिवाणंची मालाणी, बालोतरा क्षेत्र एक अच्छा, उर्वरावान, श्रद्धाशील क्षेत्र है, यहां के लोग अपना और आध्यात्मिक विकास करते रहे| समय आने पर और मांग करते रहते| क्षेत्रवासियों ने खमत खामणा कर गुरूदेव के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की| आचार्य प्रवर ने मंगल पाठ सुनाया|
*✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*
स्वरूप चन्द दाँती
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति