जीवन में दया, अनुकंपा अपनाने की दी प्रेरणा
चेन्नई. आदमी किसी भी क्षेत्र में कार्य करे, उसमें ईमानदारी व नैतिकता होनी चाहिए। राजनीति भी एक सेवा का क्षेत्र, माध्यम व साधन है। राजनीति में रहना भी एक प्रकार की कठोर तपस्या का जीवन हो सकता है। राजनीति में नैतिकता के प्रति निष्ठा रहे, मानव के प्रति मानवता की भावना रहे, किसी के प्रति घृणा नहीं, सब के प्रति मंगल भावना, अहिंसा, अनुकंपा की भावना रहे, तो राजनीति के माध्यम से भी आदमी सेवा कर सकता है और साथ में मूल्यों का भी प्रचार प्रसार करें।
लोग नशामुक्त रहें, ईमानदारी के पथ पर चलें तो राजनीति में रहने वाले व्यक्ति एक प्रकार से आध्यात्मिक उन्नयन का कार्य करते हुए सेवा दे सकते हैं। उक्त उद्गार माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में विराजित आचार्य महाश्रमण ने व्यक्त किए।
आचार्य ने कहा आदर्शों पर पूरा चलना तो मुश्किल हो सकता है, पर थोड़ा तो चलें, आदर्शों के निकट भी हो जाएंगे तो कुछ जीवन में विशिष्टता आ सकती हैं।
पंखे की हवा से जैसे शरीर को सुविधा मिलती हैं, वैसे ही आदर्श रूपी पंखे की हवा के नजदीक रहने से चेतना को भी अच्छापन मिल सकेगा। अत: राजनीति में भी मूल्यवता, नैतिकता की निष्ठा बनी रहे तो राजनीति स्वस्थ रह सकती है और राजनीति के माध्यम से देश की अच्छी सेवा हो सकती है।
उन्होंने कहा दया एक विश्लेषित विषय है यह समान नहीं होती। दया आध्यात्मिक, लोकोत्तर दया के अलावा अलौकिक दया भी होती है। पाप आचरणों से आत्मा की रक्षा करना लोकोत्तर दया है। आचार्य ने कहा मन में हर समय किसी जीव को कष्ट न पहुंचाने व हिंसा न करने की भावना रहे।
उन्होंने कहा संक्लेश, दीन-दुखी प्राणियों के प्रति अनुकंपा की भावना रहे, करुणा का भाव रहे। इनको भी चित्त समाधि मिले, शांति मिले, सर्व दुख विमुख बन जाए यह भावना बनी रहे। आदमी संतोष धारण रखे और मनोबल बनाए रखे तो शांति मिल सकती हैं।
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने कहा कि जब तक एक मां बच्चों का अच्छा संस्कार नहीं देती, देश का नागरिक संस्कारी नहीं हो सकता, क्योंकि बच्चों को नैतिक मूल्यों और संस्कारों की शिक्षा प्रथम घर से और विद्यालयों से प्राप्त होती है। मां बच्चों की पहली पाठशाला होती है। स्त्री ममता, समता का प्रतिरूप होती है। अगर महिला घर को स्वर्ग बनाने का प्रयास करे तो सबकुछ अच्छा हो सकता है।